सुमित शर्मा, सीहोर
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प्रसिद्ध संत दादागुरू के निराहार एवं हवा-पानी के सहारे जीवित रहने को लेकर इस समय दुनिया अंचभित है। विज्ञान भी इसको लेकर आश्चर्यचकित है कि कोई भी व्यक्ति बिना अन्न ग्रहण किए कैसे इतनी उर्जा के साथ रह सकता है। महान संत दादागुरू ने पिछले चार वर्षों से अधिक समय से अन्न ग्रहण नहीं किया है एवं बिना अन्न ग्रहण किए वे तीन बार की पैदल नर्मदा परिक्रमा भी कर चुके हैं। अब वे सिर्फ हवा के सहारे चल रहे हैं। 24 घंटे में सिर्फ एक बार जल ग्रहण करते हैं। इसके अलावा वे कुछ भी नहीं ले रहे हैं। दादागुरू को लेकर मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में 7 दिनों तक शोध किया गया है। इसके बाद इसकी रिपोर्ट भी रजिस्ट्रार मप्र मेडिकल कौंसिल को भेजी गई है। अब दादागुरू पर रिसर्च के लिए अमेरिका की टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख पी हेमचंद्र रेड्डी ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि वे इस शोध कार्य में सपोर्ट करें।
जबलपुर मेडिकल कॉलेज ने किया 7 दिनों तक शोध-
जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज ने महान संत दादागुरू पर 7 दिनों तक वैज्ञानिक शोध किया है। यह शोध 22 मई 2024 से 29 मई 2024 तक किया गया। इसके लिए शोध समिति का गठन भी किया गया था। इस समिति में नीलेश रावल अध्यक्ष नर्मदा मिशन जबलपुर, प्रो. डॉ. आरएम शर्मा एमडी-डीएम ह्दय रोग विशेषज्ञ एवं पूर्व कुलपति मप्र मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर, प्रो. डॉ. पी पुणेकर एमडी प्रोफेसर मेडिकल विभाग एनएससीवी मेडिकल कॉलेज जबलपुर एवं प्रो. डॉ आर महोबिया एमडी पैथोलॉजी एनएससीबी मेडिकल कॉलेज जबलपुर थे। शोध समिति की सहायता के लिए रेसीडेंट डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टॉफ एवं पुलिस प्रशासन की टीम भी थी। शोध समिति द्वारा 22 मई 2024 से 29 मई 2024 तक प्रतिदिन दादागुरू के शारीरिक, मानसिक, बायोकेमिकल एवं अन्य अन्वेषणीय मानकों का लगातार परीक्षण किया गया। इस दौरान दादागुरू की सीसीटीव्ही कैमरों, वीडियोग्राफी एवं पुलिस टीम द्वारा भी सतत निगरानी की गई।
शोध में ये सामने आए आश्चर्यजनक परिणाम-
दादागुरू ने कहा, उन्हें प्रकृति से प्राप्त होती है उर्जा-
दादागुरू ने दिया था सहमति पत्र-
इस शोध कार्य के लिए संत दादागुरू ने सहमति पत्र भी दिया था। उन्होंने सहमति पत्र में नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर में निराहार रहते हुए शारीरिक प्रभाव शोधकार्य के लिए भर्ती होने की अनुमति भी दी थी। इस दौरान वे नर्मदा पथ पर भी चले एवं वहां भी उन पर शोध किया गया। शोध के बाद यह भी सामने आया कि नर्मदा जल शुद्धता की कसौटी पर खरा उतरा है तथा उसमें अनेक ट्रेस एलीमेंट कम मात्रा में है। हानिकारण पदार्थ बिल्कुल नहीं है। लंबे समय तक इस जल को ग्रहण करने से शारीरिक लाभ होगा। दादागुरू भी इसी जल का सेवन लंबे समय से कर रहे हैं।
शोधकार्य में ये लक्षण सामान्य मिले-
– जल का स्वाद एवं गंध रूचिकर स्वीकार्य थी।
– पीएच-अलकालाइन का 7.4 जो स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है।
– धुले हुए सॉलिड तत्वों की सांद्रता, केल्सियम, मैग्नीशियम, नाइटेट, हाईनेस सही मात्रा में थी।
– आयरन, क्लोराइड, फ्लोराड, सल्फेट की मात्रा भी सही थी।
– केडिमियम, लेड सीसा, मरकरी, आर्गेनिक बिल्कुल नहीं थे।
– फिनाल कम्पाउंड, सल्फाइड, बोरस, पेस्टीसाइड्स नहीं पाए गए।
– माइक्रोबाइलॉजी टेस्ट में बहुत कम मात्रा में कोलीफार्म थे तथा इकोलाई बिल्कुल नहीं थे।
– साइनाइड, अमोनिया, बेरियम, सेलेनियम, कालीब्डीनम, एरोमेटक, हाइडोकार्बन, एल्युमीनियम नहीं थे।
– रेडियोधर्मी पदार्थ भी नहीं पाए गए।
– जल में ग्लूकोज, सुक्रोज, प्रोटीन नहीं थे, सोडियम, पोटेशियम की माइक्रो क्वांटिटी न्यून स्तर पर थी।