आदिवासी कल्याण की योजनाओं में लूट, घोटाले पर सीबीआई ने दर्ज की प्राथमिक जांच

विलुप्त हो रही जनजातियों का फंड सामान्य जातियों में बांटा-पुनीत टंडन
भोपाल
मध्यप्रदेश में आदिवासी जनजाति के कल्याण के लिए केंद्र से आने वाली योजनाओं और धन का दुरुपयोग बदस्तूर जारी है ।मध्य प्रदेश सरकार रोज आदिवासियों के कल्याण के लिए मर मिटने का दावा करती और टांट्या मामा के रूप में अवतार ले चुकने की कहानियां सुनाती है ।किंतु आदिवासियों के हिस्से की थाली से भोजन चुराने में कोताही नहीं करती।इसी संदर्भ में आज आपके सामने और इस स्वयंभू जीरो टालरेंस सरकार के सामने कांग्रेस पार्टी उन तथ्यों को उजागर कर रही है जिनके माध्यम से आदिवासी समाज के विलुप्तप्राय समूहों के हित के पैसों का इस सरकार में गबन हो रहा है ।
मिनिस्ट्री आफ ट्राईबल अफेयर्स ने बताया है कि वर्ष 2016-17 में भारत शासन के जनजातीय मामले के मंत्रालय द्वारा ऑर्गेनिक फार्मिंग योजना के अंतर्गत ऐसे आदिवासी समाजों को जिन्हें रुपीवीटीजी यानी पार्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राईबल ग्रुप कहा जाता है को 20 करोड़ रूपये और बाकी आदिवासी समाज के लिए 54 करोड रुपए इस तरह कुल 74 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे ।किंतु दूसरे की थाली से खाना चुराने और लूट सको तो लूट योजना में लगी इस सरकार के प्रशासन को इससे कोई लेना-देना नहीं है। आरटीआई के माध्यम से उक्त राशि के लाभांवित हितग्राहियों की सूची मांगे जाने पर जो प्रायमरी डाटा एनालिसिस हमें मिली है उससे पता लगता है कि या तो हितग्राहियों की सूची में अपात्र लोगों को लाभ पहुंचाया गया है या फिर सूची फर्जी तरीके से तैयार की गई हैं। जिसमें भारी भ्रष्टाचार गबन और घोटाला स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। जिसकी जांच होना चाहिए। पीवीटीजी ग्रुप में आदिवासी जनजाति के सहरिया, भारिया ,बैगा आदि समूह आते हैं इन समूहों को आवंटित पैसे में ब्राह्मण, तेली, कुर्मी ,लोहार आदि सामान्य वर्ग के हितग्राहियों के नाम पर पैसा निकाला गया है। जबकि ट्राइबल समूह के साथ धोखाधड़ी भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग का यह मामला है ।
उदाहरण के तौर पर ग्राम केंद्री ग्राम पंचायत केंद्री विकासखंड मंडला जिला मंडला में ऐसी धोखाधड़ी की गई है। जिला बालाघाट की पीवीटीजी सूची में 477 गौंड़ हितग्राहियों को लाभ देना बताया गया है जबकि पीवीटीजी की राशि से सिर्फ बैगा भारिया और सहारिया समूह के लोगों को ही लाभ दिया जाना चाहिए था ।यह पीवीटीजी वर्ग जो कि मध्यप्रदेश में विलुप्तप्राय माने जाने के कारण केंद्र विभिन्न योजनाओं में करोड़ों रुपया देती है ,के साथ अन्याय है। आरटीआई में उपलब्ध कराई गई जानकारी में ग्वालियर, शिवपुरी ,दतिया के हितग्राहियों की सूची शामिल नहीं है ।जिला डिंडोरी की पीवीटीजी और ट्राईवल हितग्राहियों की सूची एक समान है जिससे यह स्पष्ट होता है कि एक ही हितग्राही के नाम पर दोनों मदों की राशि का आहरण किया गया है और एक मद की राशि का गबन कर लिया गया है।
इसी तरह अनूपपुर की पीवीटीजी और ट्राइब्स की हितग्राहियों की सूची भी एक समान है जिससे लगता है कि एक ही हितग्राही के नाम पर दोनों मदों की राशि निकाली गई है और एक मद की राशि का गबन हुआ है हम सरकार से मांग करते हैं कि ऐसी शासकीय योजनाएं जिनमें केंद्र सरकार विलुप्त प्राय आदिवासी जन समूहों के लिए विशिष्ट योजनाओं के लिए पैसा देती है उन योजनाओं में जीरो टालरेंस दिखाये।सरकार जांच करवाएं और यह बताए कि ऐसी सरकार को आदिवासी जनजाति समूह का हितैषी कैसे माना जा सकता है। 74 करोड़ के इस महा घोटाले की जांच की मांग करते हुए हमने जनजाति कमीशन को भी पत्र लिखे हैं ताकि इस गबन और घोटाले की असली सूरत से यह आत्ममुग्ध सरकार नींद से जाग सके।
सरकार तत्काल ऑर्गेनिक खेती योजना के मद में प्राप्त 74 करोड़ की राशि में अमानत में खयानत करने वाले अधिकारियों की तत्काल जांच बैठाये और उन्हें दंडित करे। पोलखोल अभियान के तहत मध्य प्रदेश कांग्रेस इस तरह के जन घोटालों को निरंतर उजागर करती रहेगी और जनता को यह बताती रहेगी कि विज्ञापनों में छपने वाला सरकार का चेहरा कुछ के दांत अलग।
हमने पूर्व में भी प्रेस कान्फ्रेंस के माध्यम से.110 करोड़ के सेस्बानिया रोस्ट्रेटा नामक बीज की खरीदी के माध्यम से घोटाला हुआ था। हमारे निरंतर प्रयत्नों के बाद इस फर्जी बीज वितरण के प्रकरण में सीबीआई भोपाल में केंद्र सरकार के कार्यालय नेशनल सीड कारपोरेशन के विरुद्ध प्राथमिकी भी दर्ज कर ली है लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है। इसी घोटाले की अगली कड़ी में जनजाति विभाग के ऐसे आदिवासी समूह जो विलुप्त प्राय हो रहे हैं उनके नाम पर यह भारी घोटाले को किया गया है ।इस 54करोड़ के फंड से वर्मी कम्पोस्ट यूनिट डाली जानी थी जिनका भौतिक सत्यापन होना था।मगर यह नहीं किया गया और अपात्र हितग्राहियों में पैसे की बंदरबांट कर ली गई। हमें अपेक्षा है कि मध्य प्रदेश सरकार भले जांच को दबाने की कोशिश करें किंतु केंद्र सरकार अवश्य इसकी जांच करेगी ।राज्य सरकार ने जो उपयोगिता प्रमाण पत्र भारत सरकार को भेजे हैं,उनकी जांच हो तो भ्रष्टाचार के छिलके उतर जायेंगे।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा भी इस फर्जी सूची को संज्ञान में लेकर मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस जारी करवाया गया है, लेकिन अभी तक इन फर्जी सूचियों का सत्यापन नहीं करवाया जा रहा है ।केंद्र सरकार द्वारा आदिवासी कल्याण के मद में दिए जा रहे फंड को एडजस्टमेंट स्टेट हेड के फंड से खर्च करवाने की अनुमति भी ली गई है जो इस राशि का दुरुपयोग और आदिवासियों के हितों पर जबरदस्त कुठाराघात है।
राज्य सरकार द्वारा इस राशि के मनमाने दुरुपयोग के फर्जी उपयोगिता प्रमाण पत्र संज्ञान में लेकर वित्तीय वर्ष 21-22 की ग्रांट रोक दी गई है। भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने सरकार इस खर्चे को राज्य का खर्चा मानकर केंद्र से उपयोगिता प्रमाणपत्र रद्द मानकर ग्रांट जारी करने का आग्रह कर रही है। यह घोटाले बाजों का खुला संरक्षण है।क्या इसे ही जीरो टालरेंस सरकार कहते हैं।