राजनीतिक

चंडीगढ़ में AAP, बीजेपी, कांग्रेस के बीच मेयर पदों पर जीत की होगी खींचतान

चंडीगढ़
चंडीगढ़ नगर निगम चुनावों में मिले खंडित जनादेश के बाद आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के लिये अब मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर पदों पर जीत की बड़ी चुनौती होगी। निगम के कुल 35 वार्डों के लिये बीते 24 दिसंबर को चुनाव हुए थे और 27 दिसंबर को हुई मतगणना में आप 14 सीटें हासिल कर पहले, भाजपा 12 सीटों के साथ दूसरे और कांग्रेस आठ सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही है। जनता ने इनमें से किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है। स्पष्ट बहुमत के लिये 19 वोट होना अनिवार्य हैं। ऐसे में निगम के तीनों महापौर पदों के लिये अब जोड़तोड़ और दांव पेच का सिलसिला शुरू होने वाला है। इस चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को एक सीट मिली है। उसने अपना प्रदर्शन बरकरार रखा है।

शिअद का एक वोट भी अहम
साल 2016 के निगम चुनावों में भी उसे एक ही सीट मिली थी लेकिन उस उसका पंजाब की तर्ज पर चंडीगढ़ में भी भाजपा के साथ गठबंधन था। किसानों के आंदोलन को समर्थन के चलते शिअद ने पंजाब में गठबंधन तोड़ लिया था और चंडीगढ़ में इस बार वह अपने बूते चुनाव लड़ा। ऐसे में शिअद का एक वोट भी किसी भी दल के लिये अहम हो सकता है।

पहली बार निगम चुनाव में आप
आप ने पहली बार निगम चुनाव लड़ा और उसके इस दांव में भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े राजनीतिक दल बुरी तरह लड़खड़ा गये। इससे पहले कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस निगम पर काबिज रही है। निगम में 35 सदस्यों के अलावा चंडीगढ़ का सांसद भी पदेन सदस्य है और उसे वोट देने का का अधिकार प्राप्त है। चंडीगढ़ से इस समय किरण खेर सांसद हैं जो भाजपा से हैं। ऐसे में सदन में भाजपा के वोटों की संख्या 13 हो जाती है जो कि महापौर पद के चुनाव जीतने के लिये पर्याप्त नहीं है। ऐसे में अब उक्त तीनों दल इस पदों पर काबिज होने के लिये जोड़तोड़ के प्रयास शुरू होंगे। इन दलों को अपने पार्षदों को साथ रखना भी बड़ी चुनौती होगी। निगम चुनाव में दल बदल विरोधी कानून लागू नहीं होने के कारण ये राजनीतिक दल एक दूसरे के खेमे में सेंध लगाने और क्रॉस वोटिंग का प्रयास करेंगे। निगम के वर्तमान सदस्यों का कार्यकाल आठ जनवरी तक है और इस दौरान हर दल को अपने पार्षदों को एकजुट रखने के लिये स्तर्क रहना होगा। इससे पहले 30 दिसंबर को निगम के निवर्तमान सदन की अंतिम और अहम बैठक भी होने जा रही है।

समझें पूरा समीकरण
महापौर पदों के चुनाव में आप और कांग्रेस के बीच अगर सहमति होती है तो जीत पक्की हो सकती है। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि वर्ष 2013 के दल्लिी विधानसभा चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर वहां आप की सरकार बनने में कांग्रेस ने समर्थन दिया था। हालांकि यह सरकार ज्यादा देर तक नहीं चल पाई और फरवरी 2014 में केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वहीं यूनीवार्ता से बातचीत में महापौर पदों के चुनाव में आप के साथ गठजोड़ या सहमति बनाने को लेकर चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला ने साफ तौर पर इनकार किया है। उन्होंने कहा कि यह किसी भी सूरत में नहीं होगा। उन्होंने बताया कि कांग्रेस तीनों महापौर पदों के लिये अपने उम्मीदवार खड़े करेगी क्योंकि पार्टी को भले ही सीटें कम मिली हैं लेकिन उसका वोट प्रतिशत 29.79 सबसे ज्यादा रहा है। उनकी सभी पार्षदों से यह अपील रहेगी कि वे वोट प्रतिशत का सम्मान करते हुये कांग्रेस के महापौर पदों के उम्मीदवारों का समर्थन करें। वर्ष 2013 की तर्ज आप को समर्थन देने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उस समय और आज के अरविंद केजरीवाल में जमीन आसमान का अंतर है। उस समय का केजरीवाल मफलर लपेटे हुये खुद को आम आदमी और सुख सुविधाएं नहीं लेने की बात करता था। उन्होंने आरोप लगाया कि आज का केजरीकाल कथित तौर पर देश का सबसे भ्रष्ट व्यक्ति है। चंडीगढ़ निगम चुनाव में आप ने करोड़ों रूपये बहाये हैं। वहीं उन्होंने भाजपा को अपना परंपरागत राजनीतिक प्रतद्विंदी बताते हुये महापौर पदों के चुनाव में उसके साथ भी कोई गठजोड़ करने से इनकार किया।

 

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