राजनीतिक

जांच एजेंसियों का डर दिखाकर मायावती को कर दिया साइलेंट, तब जीती भाजपा- शिवसेना

मुंबई
उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में भाजपा की जीत को लेकर शिवसेना ने भगवा पार्टी के खिलाफ तीखा हमला बोला है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए बीजेपी पर बसपा प्रमुख मायावती पर दबाव बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। इसमें लिखा गया है कि यूपी चुनावों में बसपा की उपस्थिति महज औपचारिकता थी। पार्टी प्रमुख मायावती को चुनावों से दूर रहने के लिए मजबूर किया गया। मायावती की बसपा यूपी चुनाव से भाग गई और उनके वोटों को भारतीय जनता पार्टी की ओर मोड़ दिया गया। संपादकीय में कहा गया है, "मायावती कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति में रोड़ा बनकर घूमती थीं, लेकिन अब आय से अधिक संपत्ति के मामले में केंद्रीय एजेंसियों से दबाव बनाकर उन्हें चुनाव से दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया गया। जिस पार्टी ने कभी उत्तर प्रदेश में अपने दम पर सत्ता हासिल की थी, उसने राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से केवल एक पर जीत हासिल की है। क्या कोई इसे स्वीकार कर सकता है?"

भाजपा की जीत में केंद्रीय जांच एजेंसियों का दबाव प्रमुख कारक
शिवसेना ने दावा किया है कि राज्य चुनावों में भाजपा की जीत में केंद्रीय जांच एजेंसियों का दबाव प्रमुख कारक साबित हुआ। सामना में कहा गया है कि मायावती केंद्रीय एजेंसियों के दबाव का ज्वलंत उदाहरण हैं। चार राज्यों में जीत की खुशी ने भाजपा और उसके नेताओं को बेचैन कर दिया है। आर्टिकल में पार्टी की जीत का जश्न मनाने वाले महाराष्ट्र भाजपा नेताओं पर निशाना साधा गया है। इसमें कहा गया है कि 'जैसे ही उत्तर प्रदेश में जीत हासिल हुई, महाराष्ट्र के भाजपा नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि 'उत्तर प्रदेश की झांकी खत्म हो गई है, महाराष्ट्र अभी बाकी है।'

भाजपा अब पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ाने के लिए स्वतंत्र
सामना में आरोप लगाया कि चार राज्यों में जीत को देखते हुए, भाजपा अब यूक्रेन युद्ध के नाम पर पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है। लेख के अनुसार, भाजपा को बहुमत के जादुई आंकड़े (यूपी में) से 60 सीटें ज्यादा मिलीं और इसके लिए पूरी केंद्रीय सत्ता दांव पर लगी थी। केंद्रीय एजेंसियां ​​महाराष्ट्र में राजनीतिक नेताओं के पीछे जा रही हैं। इसमें तंज करते हुए सवाल किया गया कि 'आखिर केंद्रीय जांच एजेंसियां ​​​​केवल राजनीतिक विरोधियों के लिए 'निष्पक्ष' क्यों हैं?'

 

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