धर्म

 दुखी चित्त के लक्षण हैं उत्सव

दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं- एक वे जो अपने को नया करने का राज खोज लेते हैं, और एक वे जो अपने को पुराना बनाए रखते हैं और चीजों को नया करने में लगे रहते हैं। भौतिकवादी और आध्यात्मवादी में एक ही फर्क है। आध्यात्मवादी रोज अपने को नया करने की चिंता में संलग्न है। क्योंकि उसका कहना यह है कि अगर मैं नया हो गया तो इस जगत में मेरे लिए कुछ भी पुराना न रह जाएगा। क्योंकि जब मैं ही नया हो गया तो पुराने का स्मरण करने वाला भी न बचा, पुराने को देखने वाला भी न बचा, हर चीज नई हो जाएगी। और भौतिकवादी कहता है कि चीजें नई करो, क्योंकि स्वयं के नए होने का तो कोई उपाय नहीं है। नया मकान बनाओ, नई सड़कें लाओ, नए कारखाने, नई सारी व्यवस्था करो। उत्सव हमारे दुखी चित्त के लक्षण हैं। चित्त दुखी है वर्ष भर, एकाध दिन हम उत्सव मना कर खुश हो लेते हैं। वह खुशी बिल्कुल थोपी गई होती है।  
क्योंकि कोई दिन किसी को कैसे खुश कर सकता है? दिन! अगर कल आप उदास थे और कल मैं उदास था, तो आज दिवाली हो जाए तो मैं खुश कैसे हो जाऊंगा? हां, खुशी का भ्रम पैदा करुंगा। दीये, पटाके, फुलझड़ियां और रोशनी धोखा पैदा करेंगी कि आदमी खुश हो गया। लेकिन ध्यान रहे, जब तक दुनिया में दुखी आदमी हैं, तभी तक दिवाली है। जिस दिन दुनिया में खुश लोग होंगे उस दिन दिवाली नहीं बचेगी, क्योंकि रोज ही दिवाली जैसा जीवन होगा। जब तक दुनिया में दुखी लोग हैं तब तक मनोरंजन के साधन हैं। जिस दिन आदमी आनंदित होगा उस दिन मनोरंजन के साधन एकदम विलीन हो जाएंगे। कभी यह सोचा न होगा कि अपने को मनोरंजित करने वही आदमी जाता है जो दुखी है। इसलिए दुनिया जितनी दुखी होती जाती है उतने मनोरंजन के साधन हमें खोजने पड़ रहे हैं। चौबीस घंटे मनोरंजन चाहिए, क्योंकि आदमी दुखी होता चला जा रहा है।  
हम समझते है कि जो आदमी मनोरंजन की तलाश करता है, बड़ा प्रफुल्ल आदमी है। ऐसी भूल में मत पड़ जाना। सिर्फ दुखी आदमी मनोरंजन की खोज करता है। और सिर्फ दुखी आदमी ने उत्सव ईजाद किए हैं। पुराने पड़ गए चित्त में, जिसमें धूल ही धूल जम गई है; वह नए दिन, नया साल, इन सबको ईजाद करता है। और धोखा पैदा करता है थोड़ी देर। कितनी देर नया टिकता है? कल फिर पुराना दिन शुरू हो जाएगा। लेकिन एक दिन के लिए हम अपने को झटका देकर जैसे झाड़ देना चाहते हैं सारी राख को, सारी धूल को। उससे कुछ होने वाला नहीं है।  

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