रेहटी। आंवलीघाट स्थित गुरुदत्त कुटी आश्रम में स्वामी जमुनागिरी महाराज के पावन सानिध्य में चल रही नव दिवसीय श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा में वृंदावन से पधारे अर्जुनराम शास्त्री कान्हा जी महाराज ने सातवें दिवस में सती अवतार एवं भगवती सती का पावन प्रसंग सुनाते हुए 108 शक्तिपीठों का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि जब भगवती सती ने अपना दिव्य शरीर योगा अग्नि में प्रवेश कराया। उस समय महादेव भगवती सती के शरीर को लेकर भ्रमण करने लगे, तब देवताओं ने प्रार्थना की और भगवान विष्णु के चक्र सुदर्शन का प्रयोग किया। इससे भगवती सती का शरीर कट-कट कर गिरने लगा। जहां-जहां मां सती के शरीर के अंग कटकर गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हो गया।
अर्जुनराम शास्त्री कान्हा जी महाराज ने कहा कि प्राचीनकाल में महिषासुर नामक एक महा पराक्रमी असुर का जन्म हुआ था, जो रम्भ नामक असुर का पुत्र था एवं दैत्यों का सम्राट था। उसने युद्ध में सभी देवताओं को हराकर इन्द्र के सिंहासन पर अपना अधिकर जमा लिया था। वह अभूतपूर्व शक्तिशाली एवं मायावी था। देवताओं को उसने आसानी से पराजित कर दिया था। वह इंद्रलोक से तीनों लोकों पर शासन करने लगा और पराजित देवता उससे परेशान होकर ब्रह्माजी की शरण में चले गए। ब्रह्मा जी ने उन सभी देवताओं की पीड़ा सुनी और सारे देवतागण को अपने साथ लेकर उस जगह प्रस्थान कर गए, जहां भगवान विष्णु और भगवान शंकर उपस्थित थे। वहां पहुंचकर उन्होंने महिषासुर के अत्याचारों के बारे में भगवान शिव और विष्णु को अवगत कराया। ब्रह्मा जी से सारी बातें सुनकर भगवान विष्णु और शंकर महिषासुर समेत सभी दैत्यों पर अत्यन्त क्रोधित हो उठे। क्रोध में भगवान विष्णु के मुख से महान तेज उत्पन्न होने लगा। इसी प्रकार से भगवान शंकर, ब्रह्मा जी, देवराज इन्द्र आदि देवों के शरीर से भी तेज प्रकट होने लगा। वहां सभी देवताओं के मुख से निकला तेज मिलकर एकत्र हो गया और एक महान देदीप्यमान तेज़ में परिवर्तित हो गया, जिससे सारी दिशाएं प्रकाशयुक्त प्रकाशवान हो उठी, जो अंत में एक अत्यंत भीषण विद्युत् के समान सुंदर नारी के रूप में परिवर्तित हो गई। वह नारी साक्षात महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा थीं। जिनके प्रकट होने पर देवताओं ने प्रसन्न होकर उनकी स्तुति कर उन्हें आभूषण तथा अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। महिषासुर मर्दिनी, मां दुर्गा ने आश्चर्यजनक और भीषण गर्जना अहंकार रूपी महिषासुर का मर्दन किया और देवताओं को प्रसन्नता प्रदान की। स्वामी जमुना गिरी जी ने बताया कि कल की कथा में तुलसी विवाह की कथा वर्णन की जाएगी। यजमान लक्ष्मीनारायण साहू जी के साथ कुंजी लाल पटेल सहित सभी भक्तों ने कान्हाजी महाराज का माल्यार्पण कर स्वागत किया।