राज्य

सपा पर संक्रांति के बाद स्वामी की टूट के बदले काउंटर अटैक करेगी भाजपा! चर्चा में कुछ नेताओं के नाम

लखनऊ
उत्तर प्रदेश में चुनाव से ठीक पहले पालाबदल शुरू हो चुका है। विधायकों से लेकर तमाम नेता एक महीने से पार्टियां बदलने में जुटे हैं, लेकिन मंगलवार को भाजपा के लिए बड़े झटके वाली खबर आई है। योगी सरकार के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा उनके समर्थक 4 अन्य विधायकों ने भी ऐसा ही करने की बात कही है। स्वामी के सपा में जाने की बात कही जा रही है, लेकिन उन्होंने इस बात को खारिज करते हुए दो दिन के इंतजार की बात कही है। इस बीच एक तरफ भाजपा इस टूट को टालने में जुट गई है तो वहीं सपा को भी बड़ा झटका देने की तैयारी है।

सूत्रों के मुताबिक 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति के मौके पर या फिर उसके बाद किसी भी दिन भाजपा सपा के कुछ विधायकों को पार्टी में शामिल करा सकती है। सियासी हलकों में इन नामों की जोर-शोर से चर्चा भी हो रही है। इनमें से कई तो ब्राह्मण नेता हैं, जिनकी मदद से अखिलेश यादव बिरादरी को लुभाने की कोशिश में जुटे रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो यह सपा के खिलाफ भाजपा की काउंटर स्ट्रेटेजी होगी, जिसके जरिए वह स्वामी प्रसाद एवं अन्य नेताओं की टूट की काट करेगी। खासतौर पर ब्राह्मण नेताओं को पार्टी में शामिल कराकर भाजपा यह संदेश देना चाहेगी कि बिरादरी की नाराजगी का जो नैरेटिव उसके खिलाफ चलाया जा रहा है, वह सही नहीं है। इनमें से एक नेता के तौर पर मनोज पांडेय का भी नाम लिया जा रहा है, जो रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक हैं।
 
ऊंचाहार से बेटे को टिकट न मिलने से गुस्साए स्वामी?
कहा यह भी जा रहा है कि इस सीट से बेटे को टिकट दिलाने की मांग पूरी न होने पर ही स्वामी प्रसाद ने भाजपा को झटका दिया है। दरअसल ऊंचाहार सीट से स्वामी के बेटे उत्कृष्ट मौर्य पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं और सपा के मनोज पांडेय के मुकाबले हार गए थे। इस बार भाजपा किसी और नेता को उतारने की तैयारी में है। ऐसे में इस मांग के पूरी न होने पर स्वामी प्रसाद ने अलग होने का फैसला लिया। दरअसल भाजपा ने ऐलान किया है कि वह इस बार परिवारवाद को महत्व नहीं देगी। यही पॉलिसी स्वामी प्रसाद मौर्य की उम्मीदों पर भारी पड़ रही थी। हालांकि इस बीच स्वामी के बेटे उत्कृष्ट मौर्य ने सफाई दी है। उत्कृ्ष्ट मौर्य अशोक ने कहा, 'आज भी ऐसा कोई मुद्दा नहीं है कि मेरे पिता मेरे लिए या फिर बहन के लिए टिकट मांग रहे हैं। मेरे पिता और पार्टी तय करेंगे कि मैं चुनाव लड़ूंगा या फिर विधानसभा चुनाव में कार्यकर्ता के तौर पर काम करूंगा।'

स्वामी प्रसाद मौर्य का पार्टी छोड़ना कोई नई बात नहीं है। वह हर विधानसभा चुनाव से पहले अमूमन पुराने को छोड़कर नए दल में जाते रहे हैं। लेकिन भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि समाजवादी पार्टी स्वामी की टूट को पिछड़ों की एकता के तौर पर प्रचारित कर सकती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में यादव बिरादरी के बाद मौर्य समाज ऐसा दूसरा वर्ग है, जो ओबीसी तबके में बड़ी हिस्सेदारी रखता है। ऐसे में उनके भाजपा छोड़ने को पिछड़ा बनाम अगड़ा करने की कोशिश सपा की ओर से हो सकती है। यदि चुनाव का नैरेटिव ऐसा रहा तो भाजपा को मुश्किल होगी, जो जाति आधारित राजनीति की बजाय धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति में यकीन करती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button