नई दिल्ली। दिल्ली में दिनोंदिन बिगड़ रही हवा की गुणवत्ता पर सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट सब चिंतित हैं। सु्प्रीम कोर्ट में वायु गुणवत्ता संकट पर सुनवाई में केंद्र सरकार ने बताया कि राजधानी में गंभीर प्रदूषण में पराली जलने से होने वाले धुएं का योगदान केवल 10 फीसदी ही है। दिल्ली के वायु प्रदूषण में खेत के कचरे को जलाने का योगदान 10 प्रतिशत है, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वायु प्रदूषण में उद्योग और सड़क की धूल की बड़ी भूमिका है।
जस्टिस सूर्यकांत ने केंद्र से सवाल किया, क्या आप सैद्धांतिक रूप से इस बात से सहमत हैं कि पराली जलाना कोई प्रमुख कारण नहीं है और यह हल्ला वैज्ञानिक और कानूनी आधार के बिना था। जब केंद्र के वकील ने इसे स्वीकार कर लिया, तो न्यायाधीश ने कहा कि दिल्ली सरकार के हलफनामे का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि वे केवल किसानों को दोष दे रहे हैं।
दरअसल केंद्र के हलफनामे में वैज्ञानिक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि दिल्ली में सर्दियों में पीएम 2।5 में सिर्फ 4 फीसदी और गर्मियों में 7 फीसदी ही खेतों में कचरा जलने का योगदान होता है। पीएम 2।5 में 2।5 माइक्रोमीटर से कम के निलंबित कणों का वर्णन किया गया है। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अब यह साफ हो गया है कि दिल्ली के प्रदूषण में खेतों में पराली जलने का केवल 4 फीसदी ही योगदान है। यह महत्वहीन है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि प्रदूषण का प्रमुख दोषी उद्योग, परिवहन और सड़कों की धूल है और कुछ हिस्सा पराली का जलना है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने आदेश को पढ़ते हुए कहा, जहां खेतों में पराली जलाना प्रमुख कारण नहीं है, वहीं पंजाब और हरियाणा में बहुत सारी पराली जलाने की घटनाएं हो रही हैं। हम राज्य सरकारों से अनुरोध करते हैं कि वे एक सप्ताह के लिए इन घटनाओं को रोकने के लिए किसानों से बात करें। अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्यों को दिल्ली और उसके आसपास अपने कर्मचारियों के लिए घर से काम करने पर विचार करना चाहिए और किसानों को खेत का कचरा न जलाने के लिए राजी करना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र को मंगलवार को राज्यों और अन्य प्राधिकरणों की आपात बैठक बुलाने का भी निर्देश दिया है ताकि तत्काल कदम उठाने पर फैसला लिया जा सके।
उधर याचिकाकर्ताओं के वकील विकास सिंह ने कहा कि आगामी राज्य चुनावों को ध्यान में रखते हुए केंद्र किसानों को बचाने की कोशिश कर रहा है। केंद्र ने गलत बयान दिया है कि दिल्ली के प्रदूषण में खेतों में पराली जलाने का योगदान 10 प्रतिशत से कम है। सिंह ने कहा कि केंद्र की कल हुई अपनी ही आपात बैठक में कहा गया था कि यह योगदान लगभग 35 प्रतिशत है और इसे तुरंत विनियमित करने की जरूरत है।