धर्म

हर शाम करें ये काम, दूर हो जाएगी दुख परेशानी

हर कोई अपने जीवन में सुख शांति और समृद्धि चाहता है इसके लिए लोग प्रयास भी करते है मगर फिर भी अगर जीवन में दुख तक्लीफें कम नहीं हो रही है और खुशियों ने आपका साथ छोड़ दिया है तो ऐसे में आप कुछ उपायों को कर सकते है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर हर शाम श्री ललिता सहस्त्ननाम स्तोत्र का संपूर्ण पाठ किया जाए तो साधक को इसका पूरा लाभ जरूर मिलता है और मां ललिता के आशीर्वाद से दुख परेशानियां सदा के लिए दूर हो जाती है।

 

श्री ललिता सहस्त्ननाम स्तोत्र-

अङ्गं हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङगनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥ १ ॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले
या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥ २ ॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष-
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोsपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध-
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥ ३ ॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द-
मानन्दकन्दमनिषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥ ४ ॥
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे
या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोsपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥ ५ ॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे-
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति-
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥ ६ ॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनी मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥ ७ ॥
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा-
महागणेश निर्भिन्न विघ्नयन्त्र प्रहर्षिता ।
भण्डासुरेन्द्र निर्मुक्त शस्त्र प्रत्यस्त्र वर्षिणी ॥ ३१ ॥
करांगुलि नखोत्पन्न नारायण दशाकृतिः ।
महा पाशुपतास्त्राग्नि निर्दग्धासुर सैनिका ॥ ३२ ॥

 
कामेश्र्वरास्त्र निर्दग्ध सभण्डासुर शून्यका ।
ब्रह्मोपेन्द्र महेन्द्रादि देव संस्तुत वैभवा ॥ ३३ ॥
हर नेत्राग्नि संदग्ध काम संजीवनौषधिः ।
श्रीमद्वाग्भव कूटैक स्वरुप मुख पंकजा ॥ ३४ ॥
कण्ठाधः कटि पर्यन्त मध्यकूट स्वरुपिणी ।
शक्तिकूटैकतापन्न कट्यधोभाग धारिणी ॥ ३५ ॥
मूलमंत्रात्मिका मूलकूटत्रय कलेबरा ।
कुलामृतैक रसिका, कुलसंकेत पालिनी ॥ ३६ ॥
कुलांगना, कुंलान्तस्था, कौलिनी, कुलयोगिनी ।
अकुला समयान्तस्था समयाचार तत्परा ॥ ३७ ॥
मूलाधारैक निलया ब्रह्मग्रंथि विभेदिनी ।
मणिपूरान्तरुदिता विष्णुग्रंथि विभेदिनी ॥ ३८ ॥
आज्ञाचक्रान्तरालस्था रुद्रग्रंथि विभेदिनी ।
सहस्त्रारांबुजारुढा सुधारासाराभिवर्षिणी ॥ ३९ ॥
तडिल्लता समरुचिः षट्चक्रोपरि संस्थिता ।
महासक्तिः, कुण्डलिनी बिसतन्तु तनीयसी ॥ ४० ॥
भवानी भावनागम्या भवारण्य कुठारिका ।
भद्रप्रिया भद्रमूर्ति र्भक्त सौभाग्यदायिनी ॥ ४१ ॥
भक्तिप्रिया भक्तिगम्या भक्तिवश्या भयापहा ।
शांभवी शारदाराध्या, शर्वाणी शर्मदायिनी ॥ ४२ ॥
शांकरी श्रीकरी साध्वी शरच्चंद्र निभानना ।
शातोदरी शान्तिमती निराधारा निरंजना ॥ ४३ ॥
निर्लेपा निर्मला नित्या निराकारा निराकुला ।
निर्गुणा निष्कला शान्ता निष्कामा निरुपल्लवा ॥ ४४ ॥
नित्यमुक्ता निर्विकारा निष्प्रपंचा निराश्रया ।
नित्यशुद्धा नित्यबुद्धा निरवद्दा निरन्तरा ॥ ४५ ॥
निष्कारणा निष्कलंका निरुपाधि र्निरीश्वरा ।
निरागा रागमथनी निर्मदा मदनाशिनी ॥ ४६ ॥
निश्चिन्ता निरहंकारा निर्मोहा मोहनाशिनी ।
निर्ममा ममताहन्त्री, निष्पापा पापनाशिनी ॥ ४७ ॥
निष्क्रोधा क्रोधशमनी, निर्लोभा लोभनाशिनी ।
निःसंशया संशयघ्नी, निर्भवा, भवनाशिनी ॥ ४८ ॥
निर्विकल्पा निराबाधा निर्भेदा भेदनाशिनी ।
निर्नाशा मृत्युमथनी निष्क्रिया निष्परिग्रहा ॥ ४९ ॥
निस्तुला नीलचिकुरा निरपाया निरत्यया ।
दुर्लभा दुर्गमा दुर्गा दुःखहन्त्री सुखप्रदा ॥ ५० ॥
दुष्टदूरा दुराचारशमनी दोष वर्जिता ।
सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिक वर्जिता ॥ ५१ ॥
सर्वशक्तिमयी सर्वमंगला सद्गति प्रदा ।
सर्वेश्वरी सर्वमयी सर्वमन्त्र स्वरुपिणी ॥ ५२ ॥
सर्व यन्त्रात्मिका सर्व तन्त्ररुपा मनोन्मनी ।
माहेश्वरी महादेवी महालक्ष्मी र्मृडप्रिया ॥ ५३ ॥
महारुपा महापूज्या महा पातक नाशिनी ।
महामाया महासत्वा महाशक्ति र्महारतिः ॥ ५४ ॥
महाभोगा महैश्वर्या महावीर्या महाबला ।
महाबुद्धि र्महासिद्धि र्महायोगेश्वरेश्वरी ॥ ५५ ॥
महातन्त्रा, महामन्त्रा महायन्त्रा महासना ।
महायाग क्रमाराध्या महाभैरव पूजिता ॥ ५६ ॥
महेश्वर महाकल्प महाताण्डव साक्षिणी ।
महाकामेश महिषी महात्रिपुरसुन्दरी ॥ ५७ ॥
चतुष्षष्ट्युपचाराढ्या चतुष्षष्टिकलामयी ।
महाचतुः षष्टिकोटि योगिनी गणसेविता ॥ ५८ ॥
मनुविद्दा चन्द्रविद्दा चंद्रमण्डल मध्यगा ।
चारुरुपा चारुहासा चारुचन्द्र कलाधरा ॥ ५९ ॥
चराचर जगन्नाथा चक्रराज निकेतना ।
पार्वती पद्मनयना पद्मराग समप्रभा ॥ ६० ॥

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