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गुप्त नवरात्रि: सलकनपुर में हुई घटस्थापना, दुर्गासप्तशति का पाठ और पांच बार होती है आरती

- नौ दिनों तक होती है कन्याओं की पूजन, लगता है मां बिजासन को भोग

सीहोर। वर्ष में आने वाली चार नवरात्रियों में से एक नवरात्रि आषाढ़ माह में आती है। इसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस नवरात्रि में भी सलकनपुर स्थित मां बिजासन धाम में घट स्थापना की जाती है तो वहीं नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशति का पाठ होता है। इस दौरान मां बिजासन की पांच बार आरती भी होती है एवं उन्हें भोग, प्रसादी भी लगाई जाती है। गुप्त नवरात्रि में नौ दिनों तक भक्त यहां आकर मां की आराधना और कन्या पूजन करते हैं। सलकनपुर धाम स्थित मां बिजासन के दरबार में नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्तजन पहुंचते हैं। इस दौरान लोग दूर-दूर से आकर मां बिजासन से अपने मन की कामनाओं को लेकर प्रार्थना करते हैं। वर्षभर में आने वाली चार नवरात्रियों में से दो नवरात्रि गुप्त नवरात्रि होती है। 6 जुलाई से गुप्त नवरात्रि की शुरूआत हुई है, जो कि 16 जुलाई दिन मंगलवार तक चलेगी। इस दौरान भक्तजन बड़ी दूर-दूर से सलकनपुर धाम पहुंचेंगे।
होती है पांच बार आरती-
मंदिर के प्रमुख महंत पंडित प्रभुदयाल शर्मा के अनुसार गुप्त नवरात्रि के दौरान भी यहां पर घट स्थापना की जाती है। इस दौरान दुर्गा सप्तशति का नियमित पाठ होता है और पांच बार मां की आरती की जाती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान भक्तजन यहां आकर मां की आराधना करते हैं।
सड़क मार्ग आमजनों के लिए भी खोला-
मंदिर समिति के सचिव आरके दुबे ने बताया कि गुप्त नवरात्रि के चलते सड़क मार्ग सार्वजनिक रूप से सभी के लिए खुला रहेगा। इस दौरान भक्तजन अपने वाहन भी उपर ले जा सकेंगे और मां के दर्शन कर सकेंगे। इस दौरान टैक्सियों भी भक्तों के लिए उपलब्ध रहेंगी। जो भी भक्तजन टैक्सियों से जाना चाहते हैं वे भी जा सकते हैं।
गुप्त नवरात्रि के पहले दिन किया मां का विशेष श्रृंगार
इधर सीहोर के विश्रामघाट के समीपस्थ मरीह माता मंदिर पर गुप्त नवरात्रि के पावन अवसर पर दिव्य अनुष्ठान और विशेष हवन-पूजन का आयोजन किया जा रहा है। यहां पर सुबह और शाम को आरती की जाती है। इसके अलावा प्रतिदिन मां का विशेष श्रृंगार किया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन मंदिर के व्यवस्थापक गोविन्द मेवाड़ा, रोहित मेवाड़ा, ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश शर्मा, जिला संस्कार मंच के संयोजक जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा सहित अन्य श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की। इस मौके पर मंच के श्री दीक्षित ने बताया कि पहले दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक मां शैलपुत्री के निमित्त व्रत-उपवास करते है। अगर कोई व्यक्ति गुप्त नवरात्रि में सच्चे मन से 10 महाविद्याओं की पूजा करता है तो उसे जीवन के समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता है। रविवार को मां के दूसरे रूप मां ब्रह्मचारणी की पूजा अर्चना के साथ ही मंदिर परिसर में कन्या पूजन के अलावा लगातार तीन घंटे तक दुर्गा सप्तशती पाठ का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सनातन शास्त्रों में निहित है कि कालांतर में प्रजापति दक्ष ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की कठिन तपस्या की। प्रजापति दक्ष की कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा प्रकट होकर बोली- मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं। मांगों, तुम्हें क्या चाहिए। उस समय प्रजापति दक्ष ने मां को पुत्री रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा। मां दुर्गा यह कहकर अंतर्ध्यान हो गई कि जल्द सती रूप में तुम्हारे घर जन्म लूंगी। कालांतर में प्रजापति दक्ष के घर मां सती की जन्म हुआ। हालांकि, मानवीय रूप में मां सब कुछ भूल गई। एक रात स्वप्न में भगवान शिव आए और उन्हें स्मरण दिलाया। अगले दिन से मां सती भगवान शिव जी की पूजा-उपासना करने लगी। इसी समय प्रजापति दक्ष उनके विवाह हेतु वर ढूंढने लगे, लेकिन मां सती शिव जी को अपना पति मान चुकी थीं। अतरू उन्होंने पिता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उस समय मां सती की शादी भगवान शिव से हुई। हालांकि, उनके पिता प्रसन्न नहीं थे। अतरू भगवान शिव और प्रजापति दक्ष के मध्य वैचारिक द्व्न्द बना रहा। एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया। इसमें मां सती को नहीं बुलाया गया। यह जान मां सती व्याकुल हो उठीं। मां सती जाने की जिद करने लगी। भगवान शिव, मां सती की अनुरोध को ठुकरा नहीं सके। हालांकि, पिता के घर पर पहुंचने के बाद उन्हें अपमान सहना पड़ा। उस समय मां सती को आभास हुआ कि उन्होंने आकर गलती कर दी। उस समय उन्होंने यज्ञ वेदी में अपनी आहुति दे दी। कालांतर में मां सती शैलराज हिमालय के घर जन्म लेती हैं। अतः मां शैलपुत्री कहलाती हैं।

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