रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के कई मायने
नई दिल्ली। कई बार विश्व के घटनाक्रम को समझना बड़ा मुश्किल और थोड़ा नाजुक काम भी होता है। बयानबाजी वास्तविकता के करीब लगती है और किसी के दिए गए बयान को सत्य माना जाता है। पूरे मामले में तस्वीर कभी भी स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देती है। बीजिंग में रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के कई मायने हैं। दोनों नेताओं के बीच बैठक के बाद 5 हजार शब्दों के संयुक्त बयान के जरिए इसको समझा भी जा सकता है। पूर्व राजनयिक सैयद अकबरुद्दीन ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे लेख में कहा है कि रूस और चीन 1950 के दशक के बाद से किसी भी समय की तुलना में फिलहाल एक दूसरे के काफी करीब नजर आ रहे हैं और अधिकांश मौकों पर अमेरिका की आलोचना भी की गई है। शी, पुतिन का करीब आना एक तरीके से भारत के लिए भी यह थोड़ा मुश्किल है क्योंकि वह अमेरिका के करीब है।
यूक्रेन के साथ बढ़ते तनाव के बीच, चीन ने रूस से सहमति जताते हुए नाटो के विस्तार का विरोध किया। वहीं मास्को ने परोक्ष रूप से क्वाड पर आपत्ति जताते हुए एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उसके (क्वाड के) संगठन बनाने के बीजिंग के विरोध का समर्थन किया। बड़े पैमाने पर दिए गए बयान को पढ़ने से पता चलता है कि रूस और चीन व्यावहारिक रूप से एक दूसरे का समर्थन कर रहे हैं। चीन ने कहा कि वह नाटो में नए सदस्य देश को शामिल करने का विरोध करता है, वहीं पुतिन ने भी ताइवान के मुद्दे पर चीन का साथ देते हुए कहा कि वह एक चीन की नीति का समर्थन करता है। इस मुलाकात के बाद जारी संयुक्त बयान में दोनों देशों ने कहा कि उनका यह नया रिश्ता कोल्ड वार के दौर के किसी भी राजनीतिक या सैन्य गठबंधन से ज्यादा बेहतर होगा।
यह अमेरिकी सहयोगियों के सार्वजनिक रुख से अलग है। संक्षेप में कहा जाए तो रूस-चीन संबंधों की गहराई का परीक्षण अभी बाकी है। यह अभी भी गठबंधन होने से बहुत दूर है। हालांकि ऐसा लगता है कि एक तरह से एंट्री है या कम से कम उस दिशा में आगे बढ़ता हुआ प्रतीत होता है। वैश्विक व्यवस्था के साथ रूस और चीन वैश्विक नियम-निर्माण को प्रभावित करने के लिए पश्चिमी नेतृत्व वाली सोच से भिन्न पदों पर कब्जा कर रहे हैं। शिखर सम्मेलन से पहले, राष्ट्रपति पुतिन ने सिन्हुआ में उनके साझा वैश्विक लक्ष्यों को चित्रित करते हुए एक लेख लिखा था। शिखर सम्मेलन के बाद कई वैश्विक मुद्दों जैसे कनेक्टिविटी, साइबरस्पेस, विकास, लोकतंत्र और मानवाधिकार आदि पर बयान जारी किया गया।
अब दोनों देश अपने संबंधों को और बढ़ा रहे हैं। हालांकि इन दोनों देशों की बयानबाजी के बीच कई ऐसी चीजें हैं जो अनकही है। यूक्रेन का कोई विशेष उल्लेख नहीं है। दक्षिण चीन सागर का भी कोई जिक्र नहीं है। भारत-चीन सीमा मुद्दे पर भी कोई इशारा नहीं है। चीन के साथ भारत के संबंध ठीक नहीं है और यह सबसे मुश्किल दौर में है। दूसरी ओर,अमेरिका के साथ भारत के संबंध व्यापक और गहरे हुए हैं। हालांकि रूस के साथ भारत के संबंधों में अतीत की गर्मजोशी नहीं है, फिर भी वे कई रणनीतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण हैं।
हालांकि रूस-चीन के मोर्चे पर नए गठजोड़ के बारे में भारत की चिंताएं बढ़ने की संभावना है। कूटनीति में शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारत को संयुक्त रूसी-चीनी कार्रवाइयों का आकलन करने की आवश्यकता है। ताकत का बड़ा खेल चल रहा है। यह निश्चित तौर पर कूटनीतिक खेल है। ऐसी स्थिति में भारत को मतभेदों को ध्यान रखते हुए और अपने हितों को संतुलित करके कुछ समय बिताने की जरूरत है। नियत समय में जब आकलन चल रहा हो, तो कुछ मुश्किल विकल्प भी सामने आ सकते हैं।