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शब्दों का उपयोग मयार्दा के अनुरूप हो : प्रभा यादव

राजिम। राजिम पुन्नी मेला पहुंची पंडवानी गायिका प्रभा यादव ने मीडिया सेंटर के पत्रकारों से चर्चा के दौरान बताया कि मैं बचपन से ही पंडवानी गाती आ रही हूं। मैंने अपनी गुरूओं से जो सीखा है, उसी कला का उनका प्रसाद मानकर अपनी प्रस्तुति के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं। मेरा मानना है कि पंडवानी प्रस्तुति के दौरान मर्यादित शब्दों का उपयोग करना चाहिए, जिससे महाभारत जैसे महान ग्रंथ का सम्मान तो रहेगा ही, साथ ही साथ आने वाली पीढ़ी को भी सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा, इसलिए शब्दों के चयन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि हम जैसे परोसेंगे आने वाली पीढ़ी वही सीखेगी।

शब्दों में बड़ी शक्ति है इस बात का ज्ञान हम सब को होना चाहिए। उन्होंने बताया कि 40 वर्षाे से अनेक मंचों में प्रस्तुति देने का अवसर मिला है। छत्तीसगढ़ के गांव-गांव, शहर-शहर के अलावा उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत तथा पूर्वोत्तर भारत में भी छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रही है। आगे बताया कि नई दिल्ली के इंदिरा कला केन्द्र में विश्व पंडवानी कार्यक्रम हुआ, जिसमें प्रस्तुति देना अत्यंत गौरवमयी क्षण था। जिसे वह कभी नहीं भूलेगी। गुरू प्रसिद्ध पंडवानी गायक झाडूराम देवांगन को मानती है। नागपुर के तीन लड़कियों को पंडवानी सीखा रही है। बताया कि पंडवानी वीर रस की विधा है, जो जीवन्तता प्रदान करती है। श्रृंगार मधुरस घोलने का काम करती है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गौरव अवार्ड से सम्मानित हुई है। तीसरी कक्षा तक पढ़ी प्रभा बातचीत में निपूर्ण है। माहौल ने इन्हें सब कुछ सीखा दिया है। सुभद्रा हरण प्रसंग इन्हें अत्यंत प्रिय है। उन्होंने बताया कि विवाह के बाद भी पति का पूरा सहयोग रहा। छत्तीसगढ़ी भाषा पर बताया कि इनमें जो मिठास है वह कहीं नहीं मिलता, यह हमारी दाई की भाखा है। यहां के ज्यादा से ज्यादा छत्तीसगढ़ी बोले तभी संविधान की 8वीं अनुसूची में दर्ज होगी और यह दर्जा प्राप्त भाषा बन जायेगी। वह राजिम माघी पुन्नी मेला में प्रदेश सरकार द्वारा की गई व्यवस्था से अत्यंत प्रसन्न है।

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