यूपी में मुख्तार और अतीक जैसे कई बाहुबली दबंग चुनाव मैदान से हैं बाहर, क्या है सियासी पकड़
लखनऊ
दांवपेंच, कोर्ट कचहरी, जेल, सियासी उठापटक व बड़े दलों के संकोच के चलते इस बार कई बाहुबली-दबंग चुनाव मैदान से बाहर हैं। पर ऐसा नहीं है कि उन्होंने सियासत छोड़ दी है। उनका इलाके में दबदबा बदस्तूर जारी है। किसी को टिकट नहीं मिला तो कोई निर्दलीय मैदान में आ गया। खुद की बात नहीं बनी तो परिजनों को उतार दिया। पूर्वांचल की सियासत में कई बाहुबली इस चुनाव में अलग-अलग तरह से अपना असर बनाने में जुटे हैं।
प्रयागराज की पश्चिमी सीट से पांच बार विधानसभा चुनाव जीत चुके अतीक अहमद खुद तो गुजरात में जेल में हैं। उनके भाई भी फरार हैं। उनकी पत्नी ने असदुद्दीन औवेसी की पार्टी से नामांकन किया था लेकिन बाद में उन्होंने नाम वापस ले लिया। इस पर परिजन इस बार चुनाव मैदान से पूरी तरह बाहर हैं। मुख्तार अंसारी मौजूदा विधानसभा सदस्य हैं और काफी समय से बांदा जेल में हैं। पहले उनकी जेल से ही चुनाव लड़ने की तैयारी थी लेकिन अब उनके बड़े बेटे अब्बास अंसारी ने सुभासपा के टिकट पर उनकी सीट मऊ सदर से नामांकन कर दिया है। आगरा जेल में बंद विजय मिश्र भी विधायक हैं और ज्ञानपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
डीपी यादव सांसद व विधायक रह चुके हैं। उनकी अपनी पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल है। उनकी पत्नी भी विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं। इस बार दोनों अपनी पार्टी से नामांकन किए थे लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि पति पत्नी ने नामांकन के बाद नाम वापस ले लिया और बेटे कुणाल को बदायूं से चुनाव लड़ा दिया। धनंजय सिंह के चुनाव को लेकर भी काफी समय तक ऊहापोह रही। अंतत: बिहार की सत्ताधारी पार्टी जद यू उन्हें यहां जौनपुर की मल्हनी सीट से लड़ा रही है। चंदौली की सैयदराजा से विधायक सुशील सिंह फिर से मैदान में हैं।
उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद अशोक चंदेल का हमीरपुर की सियासत में लंबे समय से दबदबा रहा है। वह मौजूदा विधानसभा के लिए चुने गए थे लेकिन जेल जाने के कारण उनकी सदस्यता निरस्त कर दी गई और वहां उपचुनाव कराया गया। पर इस बार के चुनाव में उन्होंने पत्नी राजकुमारी चंदेल को मैदान में उतार दिया। कांग्रेस ने उन्हें हमीरपुर सदर से प्रत्याशी बना कर चुनाव लड़ा दिया।