विदेश

अमेरिका की सबसे कमजोर नस पर रूस का हमला, चीन और इस्लामिक देशों का मिला साथ, भारत मानेगा?

मॉस्को/नई दिल्ली
यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस को प्रतिबंधों के जाल में बुरी तरह से जकड़ना शुरू कर दिया और रूस के पूरी दुनिया में अलग थलग करने की कोशिश शुरू हो गई। लेकिन, युद्ध के एक महीने बीतने के बाद रूस ने जो चाल चली है, उसने अमेरिका को दिन में तारे दिखा दिए हैं। रूस ने युद्ध से भी बड़ा हमला अमेरिका के डॉलर पर करना शुरू कर दिया है और इसमें उसे चीन के साथ साथ कई बड़े इस्लामिक देशों का साथ मिल रहा है।
 
आर्थिक युद्ध का करारा जवाब आर्थिक युद्ध का करारा जवाब यूक्रेन पर हमला शुरू होने के बाद जब रूस के खिलाफ लगातार काफी ‘भयानक' प्रतिबंध लगाए जाने शुरू हुए, उसे रूस ने अपने खिलाफ ‘आर्थिक युद्ध' करार दिया और रूस ने साफ तौर पर कह दिया, कि अगर रूस का अस्तित्व नहीं रहेगा, तो फिर दुनिया के रहने का कोई मतलब नहीं है। ये बयान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दिया था। लेकिन, रूसी राष्ट्रपति ने परमाणु युद्ध से पहले अमेरिका के खिलाफ अपना पहला वित्तीय हथियार का इस्तेमाल किया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसी हफ्ते आदेश दिया था, कि अब रूस ‘अमित्र' देशों से कारोबार रूसी करेंसी में ही करेगा। "अमित्र" देशों, जिनसे उनका वास्तव में यूरोपीय देशों से मतलब था, उन्होंने कहा कि, अमेरिकी डॉलर या यूरो के बजाय रूबल में ही प्राकृतिक गैस के लिए भुगतान करना होगा। उन्होंने मार्च के अंत तक रूसी केंद्रीय बैंक को यह पता लगाने के लिए दिया कि यह कैसे होगा।

वहीं, रूसी राष्ट्रपति के इस फैसले से डॉलर को बहुत बड़ा झटका लगेगा और सबसे खास बात ये है, कि रूस ने डॉलर की जगह पर जिस करेंसी को चुना है, वो चीन की करेंगी ‘युआन' है और चीन पिछले कई सालों से इसी मौके की तलाश में था, कि कब चीन की करेंसी डॉलर को विस्थापित करने के लिए दुनिया में दस्तक दे, लिहाजा चीन ने पूरी तरह से रूस का समर्थन कर दिया है।

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