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भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कहा- ग्लोबल वार्मिग में विकसित देशों का सबसे अधिक हाथ

संयुक्त राष्ट्र
भारत ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव गरीब देशों और सबसे कमजोर समुदायों पर पड़ रहा है, जबकि इन्होंने इस संकट में सबसे कम योगदान दिया है। भारत ने आह्वान किया कि विकसित देशों को अपने ऐतिहासिक अनुभवों के साथ वैश्विक संक्रमण में नेट-जीरो की ओर अग्रसर होना चाहिए। नेट जीरो यानी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को यथासंभव शून्य के करीब लाना। संयुक्त राष्ट्र महासभा और आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्षों के विशेष उच्च-स्तरीय संवाद में 'द अफ्रीका वी वांट: रिकंफर्मिग द डेवलपमेंट आफ अफ्रीका ए प्रायरिटी आफ द यूनाइटेड नेशंस सिस्टम' पर बुधवार को बोलते हुए यह बातें संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव स्नेहा दुबे ने कही। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र ने तय कर रखा है कि ग्लोबल वार्मिग को पेरिस समझौते के अनुसार 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होने देना है। वायुमंडल के ताप को बढ़ाने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 2030 तक 45 प्रतिशत तक कम करने व 2050 तक शून्य तक पहुंचने की आवश्यकता है।

वहीं संयुक्त राष्ट्र में भारत ने कहा है कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा को आगे बढ़ाने में भारत अपनी उचित भूमिका निभाएगा। सुरक्षा परिषद में भारत की प्रथम सचिव स्नेहा दुबे ने कहा, वैश्विक खाद्य सुरक्षा के साथ समानता बनाए रखने व सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में भी भारत उचित भूमिका निभाएगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्नेहा दुबे ने कहा, यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को नहीं रोका गया तो अर्थव्यवस्था में इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने कहा, नई दिल्ली दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य-आधारित सुरक्षा कार्यक्रम चला रहा है, जिसने कल्याण से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव देखा है।

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