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अफगानिस्तान से अमेरिका ने सैन्य वापसी का किया बचाव, फ्रीज किए गए अफगानी फंड को देने से किया इंकार

वाशिंगटन
अफगानिस्तान में 20 साल तक लंबे युद्ध के बाद अमेरिका ने अपनी आखिरी उड़ान पिछले साल भर ली थी। अमेरिकी सेना ने 31 अगस्त 2021 तक अपनी सारी सेना अफगानिस्तान से हटाने वाला था लेकिन तालिबान को दी डेडलाइन से पहले ही उसने देश में अपनी सैन्य उपस्थिति खत्म कर दी थी। अमेरिका के आखिरी विमान सी-17 ने 30 अगस्त की दोपहर को काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट से उड़ान भरी जिसके साथ ही अफगानिस्तान अब अमेरिकी सेना से पूरी तरह मुक्त हो गया है। अमेरिका ने लगभग एक साल पहले 20 साल की सैन्य उपस्थिति समाप्त होने के बाद अफगानिस्तान से हटने पर सोमवार को अपनी स्थिति का बचाव किया, और फ्रीज हुए अफगान फंड 3.5 बिलियन अमरीकी डालर जारी करने से भी इंकार कर दिया है।

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने एक ब्रीफिंग में कहा, 'अमेरिकी इतिहास के सबसे लंबे युद्ध को खत्म करना कभी भी आसान नहीं होने वाला था, लेकिन एक साल बाद हम राष्ट्रपति के फैसले के कारण एक देश के रूप में मजबूत स्थिति में हैं – बेहतर खतरों और चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम हैं।'

कई लोगों ने अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी को एक आपदा माना है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के आश्वासन के बावजूद देश की राजधानी तालिबान के हाथों में चली गई, उस वक्त हजारों अमेरिकी नागरिक और सहयोगी देश से सुरक्षित रूप से बाहर निकलने के लिए फंसे थे। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, प्राइस ने दावा करना जारी रखा कि प्रयास सफल रहा था।

प्राइस ने यह भी कहा कि बाइडेन प्रशासन अफगान फंड केंद्रीय बैंक को जारी करने के मामले में निकट-अवधि के विकल्प के रूप में नहीं देखता है। प्राइस ने यह भी संकेत दिया कि अफगान फंड को अनफ्रीज करने का मतलब आतंकवादी समूहों के पास धन जाने की संभावना है। इससे पहले अफगानिस्तान के लिए अमेरिकी सरकार के विशेष प्रतिनिधि थॉमस वेस्ट ने भी फ्रीज हुए अफगान फंड को जारी करने से इनकार कर दिया था।

अफगानिस्तान फंड को अमेरिका ने कर दिया था फ्रीज
अगस्त महीने में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिका ने अफगान सेंट्रल बैंक से संबंधित अरबों डालर की संपत्ति को भी फ्रीज कर दिया था। इसके अतिरिक्त आइएमएफ ने भी अफगानिस्तान के लिए फंड को रोक दिया था। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतेरस ने कहा था कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था ‘बनने या बिखरने की स्थिति' का सामना कर रही है और उन्होंने दुनिया से देश की अर्थव्यवस्था को चरमराने से बचाने का आग्रह किया था। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था अगस्त में तालिबान के अधिग्रहण से पहले अंतरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर थी। देश का 75 प्रतिशत खर्च अंतरराष्ट्रीय सहायता से मिलता था।

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