ज्यादा संवेदनशील होने की बीमारी…
दुनिया में कई लोगों को छोटी छोटी बातों से बहुत फर्क पड़ता है। ऐसे लोग कुछ खास चीजों जैसे रोशनी या तेज आवाज कोलेकर बहुत संवेदनशील होते हैं। पहले उन्हें सिर्फ संवेदनशील कहा जाता था मगर अब अमरीका समेत कई देशों में हुए रिसर्च के बाद ऐसे लोगों के ज्यादा संवेदनशील होने को एक बीमारी बताया जा रहा है। इस बीमारी का नाम सेंसरी प्रॉसेसिंग डिसॉर्डर या एसपीडी है। कुछ लोग किसी के कदमों की आहट या शोर-गुल से परेशान हो जाते हैं। वे चीखने लगते हैं। कुछ लोग तेज रोशनी को बर्दाश्त नहीं कर पाते। ऐसी परेशानी के शिकार लोगों में ज्यादातर बच्चे होते हैं। इस बीमारी का नाम पहले पहले अमरीका के डॉक्टर ज्यां आयर्स ने रखा था। उन्होंने 1960 में इसका नाम सेंसरी इंटीग्रेशन डिसॉर्डर रखा था। ज्यां आयर्स की छात्रा रही लूसी जेन मिलर ने ज्यां के इस बीमारी के बारे में रिसर्च को आगे बढ़ाया। उन्होंने इस बीमारी की तीव्रता नापने के लिए कुछ पैमाने भी ईजाद किए हैं।
अलग होता है दिमाग
रिसर्च में पता चला है कि एसपीडी की जड़ें दिमाग में होती हैं। इस बीमारी के शिकार लोगों का दिमाग आम लोगों के दिमाग से अलग होता है। दिमाग के इस हिस्से की मदद से हम आवाज, रोशनी और छुअन को महसूस करते हैं। एसपीडी से पीडि़त लोगों के दिमाग का यही हिस्सा कम विकसित होता है। एक और बात साफ हुई है कि एसपीडी का सीधा ताल्लुक ऑटिज्म नाम की बीमारी से होता है क्योंकि 90 फीसद मरीजों में ऑटिज्म के लक्षण पाए गए।
अहसास से बेहाल
वैसे किसी खास चीज से परेशानी नई बात नहीं। बहुत से बच्चे रोशनी या आग या शोर-गुल से घबराकर चीखने लगते हैं। एक सर्वे के मुताबिक सोलह फीसद बच्चे ऐसी परेशानी की शिकायत अपने माता-पिता से करते हैं। हालांकि उम्र बढऩे के साथ उनकी यह दिक्तत दूर हो जाती है। लेकिन कुछ लोग अपने अहसास से बेहाल रहते हैं। असल में हमारे एहसास, हमें बाकी दुनिया से रूबरू कराते हैं। वो हमें दुनिया दिखाते हैं। आवाजें सुनाते हैं।
छुअन को महसूस कराते हैं। होता यह है कि हमारा दिमाग इन संकेतों को पकड़कर इसे हमें महसूस कराता है। कुछ लोगों को दूसरों को खुश या परेशान देखकर उनके सुख-दुख का एहसास हो जाता है। ऐसे लोगों को ऑर्किड कहा जा रहा है। उनको जरा सी बात चुभ जाती है। वे दु:ख भरी खबर सुनकर रोने लगते हैं। कोई मजेदार सीरियल देखते वक्त उनकी हंसी है कि रुकती ही नहीं। उन्हें पार्टियों से ज्यादा किताबों का शौक होता है।
भावों को गहराई से नापना
संवेदनशील लोग, भावों को ज्यादा गहराई से नापते हैं। बातों या चीजों को लेकर वे बहुत संवेदनशील होते हैं। दूसरों से उन्हें तुरंत हमदर्दी हो जाती है। ऐसे बेहद संवेदनशील लोग किसी भी हालात को आराम से समझते हैं। तब उस पर कोई प्रतिक्रिया देते हैं। वे आस-पास के माहौल को लेकर भी काफी चौकन्ने रहते हैं। उनके ऊपर दूसरों के मूड तक का असर पड़ता है। पता चला है कि दुनिया के बीस फीसद लोग ज्यादा संवेदनशील होते हैं। बच्चे दो तरह के होते हैं। एक तो वे जो हर माहौल में ढल जाते हैं। मजे करते हैं। दूसरे वो बच्चे, जिन्हें आगे बढऩे के लिए एक खास माहौल चाहिए।
क्या है इलाज
एक सवाल वहीं का वहीं है, कि आखिर एसपीडी के शिकार लोग कहां फिट बैठते हैं? लोगों में सेंसिटिव प्रॉसेसिंग डिसऑर्डर का पता लगने के बाद अगला कदम उनके इलाज का होता है। इसका मकसद उनके अहसास कम करना नहीं होता बल्कि कोशिश यह होती है कि आम माहौल में वो कम तकलीफ के साथ रह सकें। जिंदगी में आगे बढ़ सकें। एसपीडी पीडि़तों का इलाज दवाओं के साथ ही साथ कंप्यूटर गेम वगैरह से भी किया जा रहा है। फिलहाल तो एसपीडी पर काम कर रहे रिसर्चर और इसके शिकार लोग, इसे एक बीमारी का दर्जा दिलाने, इसके बारे में लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं।