अटका आरक्षण संशोधन विधेयक, राज्यपाल ने 10 आपत्तियों के साथ राज्य सरकार से किया जवाब-तलब
रायपुर । छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक को राज्यपाल अनुसुईया उइके ने 10 आपत्तियों के साथ राज्य सरकार से जवाब-तलब किया है। राजभवन के आला अधिकारियों ने संशोधन विधेयक पर 12 दिनों तक विधि विशेषज्ञों की राय के बाद दस आपत्ति की हैं। राजभवन ने मुख्य आपत्ति राज्य सरकार की ओर से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) की जनसंख्या को लेकर गठित क्वांटिफाइबल डाटा आयोग पर की है। डाटा आयोग की रिपोर्ट सरकार ने न तो विधानसभा में पेश की, न ही राजभवन को भेजा है। अब राज्यपाल ने डाटा आयोग की रिपोर्ट मांगी है। राजभवन ने यह भी पूछा है कि क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण दें। सरकार यह भी बताए कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं। राजभवन की आपत्ति में इंद्रा साहनी केस और बिलासपुर हाईकोर्ट की आपत्ति का भी जिक्र है। राजभवन ने पूछा है कि आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण का उदाहरण रखा गया था? उन तीनों राज्यों ने आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करें। उन्होंने विधेयक के लिए विधि विभाग की सरकार को मिली सलाह की जानकारी भी मांगी है। राजभवन ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए बने कानून में सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। तर्क है कि उसके लिए अलग विधेयक पारित किया जाना चाहिए था। राजभवन ने यह भी जानना चाहा है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति सरकारी सेवाओं में चयनित क्यों नहीं हो पा रहे हैं। संशोधन विधेयक में ईडब्ल्यूएस का उल्लेख नहीं है। ऐसे में शासन को ईडब्ल्यूएस के लिए क्या अलग से अधिनियम लाना चाहिए था।
50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण करने की क्यों पड़ी जरूरत
राजभवन के पत्र में स्पष्ट है कि 1992 में आए इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। बिलासपुर उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उन्हें देखने के बाद न्यायालय का कहना था कि ऐसी कोई विशेष परिस्थिति नहीं है, जिसके कारण आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य सरकार के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक की जा रही है।
भाजपा के दबाव में अटका आरक्षण विधेयक: भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंगलवार को मीडिया से चर्चा में कहा था कि भाजपा नेताओं के दबाव के कारण राज्यपाल आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं। उन्होंने कहा कि विधानसभा से सर्वसम्मति से विधेयक पारित हुआ है, तो राजभवन में रोका नहीं जाना चाहिए। इसे तत्काल मंजूरी दी जानी चाहिए। बघेल ने कहा कि जो राज्यपाल यह कह रही थीं कि मैं तुरंत हस्ताक्षर करूंगी, वह अब किंतु-परंतु लगा रही हैं। इसका मतलब यह है कि वह तो हस्ताक्षर करना चाहती थीं, लेकिन भाजपा के लोगों ने दबाव बनाया है। राज्यपाल की तारीफ करते हुए सीएम ने कहा कि वह भोली आदिवासी महिला हैं। निश्छल भी हैं, लेकिन दबाव में उन्हें कहना पड़ा कि मैं तो सिर्फ आदिवासी आरक्षण के लिए बोली थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि आरक्षण का बिल एक वर्ग के लिए नहीं होता, यह सभी वर्गों के लिए होता है। यह प्रविधान भारत सरकार और संविधान में है।