विदेश

रूस के साथ डटकर खड़ा है बेलारूस, नाटो जैसा CSTO संगठन है वजह; जानें कब बना था

नई दिल्ली

रूस और यूक्रेन के बीच जंग में नाटो संगठन भी उतर पड़ा है। अमेरिका समेत नाटो देशों की ओर से यूक्रेन को हथियारों से लेकर अरबों डॉलर तक की रकम मदद के तौर पर दी जा रही है। जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा समेत कई देशों ने इस जंग के बाद से रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं और यूक्रेन को खुला समर्थन देने का ऐलान किया है। मिसाइलों से लेकर होवित्जर तोपों तक की सप्लाई यूक्रेन को की जा रही है। नाटो संगठन में कुल 30 देश शामिल हैं, जिनमें कनाडा, डेनमार्क, बेल्जियम, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम जैसे देश हैं। इसके अलावा यूक्रेन के पड़ोसी देश एस्टोनिया, लिथुआनिया, लातविया, पोलैंड, हंगरी और चेक रिपब्लिक भी इसका हिस्सा हैं।

नाटो देशों में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस को ही सैन्य तौर पर मजबूत देशों में गिना जाता है। इसके अलावा अन्य देशों को लेकर यह धारणा है कि ये रूस जैसी महाशक्ति से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के मकसद से अमेरिका के नेतृत्व वाले इस संगठन का हिस्सा बने हैं। यूक्रेन भी इसका हिस्सा बनना चाहता था, जिसे लेकर विवाद छिड़ा है और रूस ने उस पर हमला ही बोल दिया है। हालांकि रूस भी खेमेबंदी की राजनीति में पीछे नहीं है और उसके नेतृत्व में भी एक संगठन है, जिसका नाम CSTO यानी कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन है।

इस संगठन में सोवियत संघ का हिस्सा रहे देश शामिल हैं। सोमवार को बेलारूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग में रूस के साथ मिलकर अपनी सेना उतारने का ऐलान किया था। दरअसल बेलारूस भी इसी CSTO का हिस्सा है। उसके अलावा अर्मेनिया, कजाखस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान भी इस संगठन का हिस्सा हैं। वैश्विक राजनीति में इस संगठन को भी सुरक्षा की गारंटी देने वाले संगठन के तौर पर देखा जाता है। सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन देशों के CSTO में शामिल होने का यह अर्थ है कि उनकी सुरक्षा पर किसी भी तरह का संकट आने पर रूस उनके साथ खड़ा मिलेगा।
 

कब हुआ था CSTO का गठन?

शीत युद्ध के बाद 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया है। इसके बाद 1994 में CSTO का गठन हुआ था। इसका मकसद रूस और सोवियत का हिस्सा रहे देशों के हितों की रक्षा करना था। फिलहाल इसमें 6 देश शामिल हैं और 2012 में उज्बेकिस्तान इससे अलग हो गया था। इस संगठन के पास अलग 20,000 सैनिकों का दस्ता है, जिसे पीस कीपिंग फोर्स कहा जाता है। इस संगठन में शामिल देश अकसर युद्धाभ्यास भी करते रहते हैं। 

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