तालिबान शासन के लिए बढ़ती जा रही हैं चुनौतियां, गहराया आर्थिक संकट
काबुल
काबुल पर तालिबान का कब्जा हुए आठ महीने गुजर चुके हैं। लेकिन इस दौरान तालिबान अपनी सत्ता को स्थिरता नहीं दे पाया है। विश्लेषकों की राय है कि अफगानिस्तान आज भी राजनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक रूप से उतना ही अस्थिर है, जितना पिछले साल अगस्त में था। पिछले 15 अगस्त को तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था।
गुजरे आठ महीनों में अफगानिस्तान का आर्थिक संकट और गहराया है। इससे देश में आज अकाल जैसी हालत है। इस बीच देश में अलग-अलग गुटों के उभरने के भी संकेत हैं। इससे तालिबान की सत्ता को चुनौती मिल रही है। अब यह साफ हो चुका है कि तालिबान सरकार देश में कानून-व्यवस्था लागू करने में नाकाम है। हाल में देश में हुए कई बम धमाकों को इस बात का संकेत समझा गया है।
सबसे ताजा हमला पिछले 29 अप्रैल को काबुल की एक मस्जिद में हुआ। ये मस्जिद सुन्नी समुदाय के तहत आने वाले अल्पसंख्यक समूह जिकरीस की है। इस हमले में 50 से अधिक लोग मारे गए। उधर पिछले हफ्ते मजार-ए-शरीफ में शिया समुदाय के एक वाहन पर हमला हुआ था, जिसमें कम से कम नौ लोग मारे गए। शिया वाहन पर हमला तालिबान के यह दावा करने के कुछ ही देर बात हुआ कि आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-के के एक आतंकवादी गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तार आतंकवादी को एक शिया मस्जिद पर हमले का मास्टरमांइड बताया गया था। उस हमले में 31 लोग मारे गए थे।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि हालिया हमलों ने तालिबान नेतृत्व के इस दावे को गलत साबित कर दिया है कि आईएसआईएस-के का देश में खात्मा कर दिया गया है। साथ ही देश में सभी अल्पसंख्यक समुदायों को पूरी सुरक्षा देने का उसका वादा भी खोखला साबित हुआ है। वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि तालिबान शासन में अंदरूनी मतभेद के कारण आईएसआएस-के आज भी एक मजबूत ताकत बना हुआ है। समझा जाता है कि हक्कानी गुट के इस आतंकवादी गुट से पुराने रिश्ते हैं। हक्कानी आईएसआईएस-के के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को इच्छुक नहीं रहे हैं। जबकि तालिबान शासन में गृह मंत्रालय हक्कानी गुट के पास ही है।
एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसे बहुत से लड़ाके आईएसआईएस-के में शामिल हो गए हैं, जिन्हें अमेरिकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने प्रशिक्षित किया था। जब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में थी, तब इन लोगों को तालिबान से लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। इन लोगों के शामिल होने से आईएसआईएस-के की ताकत बढ़ी है।
अमेरिकी थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज ऑफ वॉर के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक अफगानिस्तान में ऐसे कई गुट हैं, जिनकी राय में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। इसलिए ये गुट अपने हमलों को आजादी की लड़ाई बताते हैं। हाल में पूर्व राष्ट्रपति अशरफ ग़नी के दौर में अफगान सुरक्षा बल से जुड़े रहे लेफ्टिनेंट जनरल समी सादात भी इन गुटों से जाकर मिल गए।
इन घटनाओं से बढ़ी चुनौती से तालिबान परिचित है। खबरों के मुताबिक इसीलिए उसने हाल में उत्तरी अफगानिस्तान में अपने बलों की तैयारी बढ़ा दी है। इसे देखते हुए कई विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि आने वाले महीनों में अफगानिस्तान में गृह युद्ध जैसा माहौल बनेगा। उससे आर्थिक संकट के और गहराने की आशंका भी जताई गई है।