भोपालमध्य प्रदेश

फूल आने के बाद भी वन विभाग की प्राकृतिक कलर बनाने में रूचि नहीं

  • फूल पककर तैयार हो चुका है और जमीन पर गिरने भी लगा

भोपाल । रंगों का पर्व होली इस बार फूलों से बनने वाले हर्बल रंगों से नहीं महकेगा। इसमें वन विभाग ने इन रंगों को बनाने में रूचि नहीं लेना सामने आया है। दरअसल इस बार वन विभाग द्वारा प्राकृतिक फूलों से रंग बनाने की कोई तैयारियां दिखाई नहीं दे रही है। इधर होली का त्योहार मैं कुछ ही दिन शेष है। विभाग के अधिकारियों का मानना है कि रंग बनाने के लिए उपयोग में आने वाले फूल पके नहीं है। इसलिए काम शुरू नहीं हुआ है। जमीनी हकीकत इससे कुछ और है फूल पककर तैयार हो चुका है और जमीन पर गिरने भी लगा है। वन विभाग के सुस्त रवैया से होली की मस्ती के दीवानों को हर्बल रंगों के लिए निराश होना पड़ेगा।
गौरतलब है कि पुराने समय में प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में प्राकृतिक गुलाब, पलाश, कुसुम, अमलतास आदि फूलों से बनने वाले प्राकृतिक रंगों से यहां के लोग होली खेलते आए हैं। हालांकि विगत कुछ वर्षों से इन प्राकृतिक हर्बल रंगों की जगह केमिकल से बनने वाले रंगों ने ले ली थी, केमिकल के रंगों से होने वाले नुकसान और इंफेक्शन को देखते हुए शासन द्वारा वन विभाग को हर्बल कलर बनाने के लिए आदेशित किया। बड़े पैमाने पर विभाग द्वारा प्रदेश के कई इलाकों में फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार भी किए गए थे और बिक्री के लिए इंस्टॉल भी लगे। लेकिन स्थानीय वन विभाग द्वारा न पहले इस कार्य में रुचि दिखाई और न ही अब दिखाई दे रही है।

फूलों की बहार से महक रहे जंगल
प्रदेश के जंगलों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। जिसके चलते प्राकृतिक हर्बल रंग बनाने के लिए उपयोग में आने वाले पलाश, कुसुम, अमलतास आदि के फूल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। फूलों की बहार से मप्र के जंगल महक रहे है। वन परिक्षेत्रों के रास्तों पर फूलों से सजे यह पेड़ प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाते नजर आ रहे हैं। फूल पूरी तरह से पक कर तैयार हो चुका है और अब यह जमीन पर खिरने भी लगे हैं। रंग बनाने का आसान है तरीका प्राकृतिक रंग बनाने का तरीका बहुत ही आसान है और इसको बनाने के कई तरीके हैं। फूलों को सुखाकर या फूलों को पानी में भिगोकर रखा जाता है, जिसके कारण फूलों का रंग पानी में उतर आता है। दूसरी तरफ फूलों को सुखाकर पानी में उबाला जाता है और उसके बाद इस पानी में पर्याप्त मात्रा में आरारोट मिलाकर रंग तैयार किया जाता है। मूलत: पलाश, खाकरा, केसूड़ी, अमलतास कनेर आदि फूलों का उपयोग किया जाता है। केमिकल रंग त्वचा को रूखा बना देता है इस विषय को लेकर चल चर्म रोग विशेषज्ञ सुमित शर्मा से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि केमिकल रंग त्वचा को रूखा और बेजान बना देते हैं। कई बार देर से निकलने वाले यह रंग खुजली, जलन और इंफेक्शन करते हैं। इनसे दूर ही रहना चाहिए। फूलों से बने प्राकृतिक हर्बल रंग हर मायने में फायदेमंद है।

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