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बंगाल चुनावी हिंसा में 60 की गई जान,250 के खिलाफ सीबीआइ ने पेश की चार्जशीट

कोलकाता
 पिछले साल दो मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बंगाल के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। ज्यादातर मामलों में हिंसा का आरोप सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर लगा है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा का दावा है कि राज्य में चुनाव बाद हिंसा में लगभग 60 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया है जिनमें 50 से ज्यादा भाजपा के कार्यकर्ता शामिल हैं। हालांकि राज्य सरकार चुनाव बाद हिंसा के आरोपों से इन्कार करती रही है। कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) चुनाव बाद हिंसा के मामलों की जांच कर रहा है।

चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों में सीबीआइ ने अब तक 250 आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट पेश की है और 224 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। चुनाव बाद हिंसा में 58 मामले पंजीकृत किए गए हैं। इनमें 47 मानवाधिकार आयोग की ओर तथा 11 राज्य प्रशासन की ओर से मिले है। इनमें 35 मामलों को सीबीआइ ने लौटा दिया है। 23 मामलों की जांच जांच जारी है। इनमें हत्या, हत्या की कोशिश, दुष्कर्म, दुष्कर्म का प्रयास जैसी घटनाएं शामिल हैं।

 

गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा के दौरान मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच के लिए 18 जून को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के चेयरमैन को एक विशेष समिति बनाकर जांच का आदेश दिया था। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में ममता बनर्जी सरकार को हिंसा के लिए दोषी माना था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के आधार पर हाई कोर्ट ने पिछले साल 19 अगस्त को राज्य में चुनाव बाद हुई हिंसा के दौरान हत्या व दुष्कर्म जैसे गंभीर मामलों की सीबीआइ जांच का आदेश दिया था। वहीं, हिंसा से संबंधित अन्य आपराधिक मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन करने का निर्देश दिया था।

 

हिंसा पर मानवाधिकार आयोग की समिति ने की थी गंभीर टिप्पणी

गौरतलब है कि राजीव जैन की अध्यक्षता वाली समिति और एनएचआरसी की टीम ने बंगाल के विभिन्न इलाकों का दौरा कर शिकायतों की सच्चाई का पता लगाया। इसके बाद एनएचआरसी की समिति ने 13 जुलाई को हाई कोर्ट में सौंपी अपनी अंतिम रिपोर्ट में बंगाल में कानून व्यवस्था की स्थिति पर तल्ख टिप्पणी की थी। समिति ने कहा था कि भारी जनादेश के साथ जीतने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार ने आंखें मूंद लीं थी, जब उसके समर्थक प्रतिद्वंद्वी भाजपा कार्यकर्ताओं पर अत्याचार किया और कथित तौर पर हिंसा में लिप्त थे। समिति ने यहां तक कहा था कि बंगाल में कानून का शासन नहीं बल्कि शासक का कानून है।

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