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पत्रकारों के खिलाफ बात-बेबात दर्ज ना करें मामलेः एनएचआरसी

दिल्ली
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम की सरकारों को पत्रकारों के खिलाफ बात-बेबात मामले दर्ज ना करने का निर्देश दिया है. हाल के महीनों मे छोटी-छोटी बातों पर भी मामले दर्ज किए जाते रहे हैं.आयोग की ओर से मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जन-सुनवाई के लिए असम की राजधानी गुवाहाटी में दो-दिवसीय शिविर का आयोजन किया गया था. इसमें कुल 19 मामलों की सुनवाई के बाद उनका निपटारा किया गया. आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने असम में मुठभेड़ के नाम पर होने वाली हत्याओं की भी कड़ी आलोचना की है. बीती मई में बीजेपी सरकार के सत्ता में लौटने के बाद अब तक मुठभेड़ या पुलिस हिरासत में कम से कम 32 लोगों की मौत हो चुकी है. जन-सुनवाई आयोग की ओर से गुवाहाटी में आयोजित दो-दिवसीय जन-सुनवाई शिविर के दौरान इलाके में मानवाधिकार उल्लंघन की कुल 19 घटनाओं की सुनवाई कर उनका निपटारा किया. इनमें से त्रिपुरा के दस, मेघालय के छह और मिजोरम के तीन मामले शामिल थे. तस्वीरेंः बांग्लादेश की आजादी के 50 साल आयोग ने सुनवाई के बाद त्रिपुरा में सुरक्षा बल के जवानों द्वारा एक नाबालिग युवती से बलात्कार के मामले में सात लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया. इसी तरह मिजोरम में पुलिस हिरासत में मौत के एक मामले में भी इतना ही मुआवजा दिया गया. आयोग ने मेघालय में अवैध कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों की मौत के दो मामलों में भी परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया.

शिविर का उद्घाटन आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने किया. इसमें आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति एम. एम. कुमार और राजीव जैन व महासचिव बिंबाधर प्रधान के अलावा आयोग और संबंधित राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे. आयोग वर्ष 2007 से देश के विभिन्न राज्यों में शिविर बैठक और सार्वजनिक जन-सुनवाई का आयोजन कर रहा है और अब तक 40 से अधिक ऐसी बैठकें और सुनवाइयां कर चुका है, जिनका उद्देश्य जमीनी स्तर पर मामलों का त्वरित निपटान करना और मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करना है. बढ़ रही है वर्दी की हिंसा शिविर के समापन के मौके पर पत्रकारों से बातचीत में आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने कहा, "यह आम राय नहीं बनाई जा सकती कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) लागू होने की वजह से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है. अधिनियम लागू करने या वापस लेने की जरूरत की समीक्षा सरकार करेगी. हालांकि आयोग हिरासत में होने वाली मौतों को बेहद गंभीरता से लेता है और वह इनका स्वत: संज्ञान ले सकता है.” इस महीने की शुरुआत में नागालैंड के मोन जिले में सुरक्षा बल के जवानों की फायरिंग में 14 बेकसूर लोग मारे गए थे. न्यायमूर्ति मिश्र ने बताया कि मानवाधिकार आयोग ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है और संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किया है क्योंकि राज्य में आयोग की कोई इकाई नहीं है.

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