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विजय माल्या को भारत लाने में टर्निंग पॉइंट साबित होगा SC का फैसला, कारोबारी ने जताई निराशा

 नई दिल्ली
 
पिछले पांच साल से अधिक समय से ब्रिटेन में रह रहे विमानन कंपनी 'किंगफिशन एयरलाइंस' के पूर्व मालिक विजय माल्या ने उच्चतम न्यायालय के फैसले पर सोमवार को निराशा जताई। न्यायालय ने भगोड़े कारोबारी को अदालत की अवमानना के मामले में चार महीने की सजा सुनाई है। इसके साथ ही न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह कारावास की सजा काटने के लिए भगोड़े कारोबारी की उपस्थिति सुनिश्चित करे, जो 2016 से ब्रिटेन में है। इधर, जानकारों का मानना है कि अदालत के फैसले से माल्या को भारत लाने में एजेंसी को मदद मिलेगी।

66 वर्षीय माल्या ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, ''मेरे पास उच्चतम न्यायालय के फैसले पर यह कहने के अलावा और कुछ नहीं है कि मैं जाहिर तौर पर निराश हूं।'' न्यायमूर्ति यू. यू. ललित की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने माल्या पर 2000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। माल्या को अवमानना के लिए नौ मई, 2017 को दोषी ठहराया गया था।  शीर्ष अदालत ने 2017 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए माल्या की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका 2020 में खारिज कर दी थी। न्यायालय ने अदालती आदेशों को धता बताकर अपने बच्चों के खातों में चार करोड़ डॉलर भेजने को लेकर माल्या को अवमानना का दोषी ठहराया था। अदालत की अवमानना संबंधी कानून, 1971 के अनुसार, अदालत की अवमानना पर छह महीने तक की साधारण कैद या 2,000 रुपये तक का जुर्माने या दोनों सजा हो सकती है। माल्या पर 9,000 करोड़ रुपये से अधिक की बैंक ऋण धोखाधड़ी का आरोप है।

भारत लाने में मिलेगी मदद
केंद्र सरकार के पूर्व अटॉर्नी जनरल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि विजय माल्या अब तक सिर्फ वांछित थे। मगर, सुप्रीम कोर्ट की ओर से उन्हें अवमानना के मामले में चार माह कैद की सजा सुनाए जाने के बाद अब वह सजायाफ्ता की श्रेणी में आ गए हैं। ऐसे में माल्या को ब्रिटेन से प्रत्यर्पण संधि के तहत भारत लाने की कवायद में भारतीय एजेंसी को मदद मिलेगी।

रोहतगी ने कहा कि माल्या को सजा दिए जाने से प्रत्यर्पण की कार्रवाई में भारत सरकार का पक्ष मजबूत होगा। वहीं केंद्र सरकार के पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला माल्या को भारत लाने में मददगार साबित होगा। भारतीय जांच एजेंसी इस फैसले का हवाला देकर ब्रिटेन की अदालत में अपना पक्ष मजबूती से रख सकती है।

 

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