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यहां लगता है भूतों का मेला, लगाई जाती है क्लास, धार्मिक महत्व भी है खास

सीहोर। पितृमोक्ष अमास्या को भूतड़ी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन सीहोर जिले के प्रसिद्ध नर्मदा तट आंवलीघाट पर भूतों का मेला लगता है। इस दौरान उनकी क्लास भी लगाई जाती है। श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन से यहां पर लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। दूर-दूर से लोग नर्मदा तट आंवलीघाट आते हैं। दरअसल आंवलीघाट का पौराणिक महत्व भी बताया गया है। इसके लिए यह नर्मदा तट बेहद खास माना जाता है। यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु भूतड़ी अमावस्या पर पहुंचते हैं एवं नर्मदा स्नान के साथ पूजा-अर्चना करके लाभ उठाते हैं। यहां पर चतुर्दशी एवं अमावस्या की मध्य रात्रि 12 बजे से भूतों का मेला लगना शुरू हो जाता है। इस दौरान रातभर यह क्रम चलता है। जिन लोगों को बाहरी बाधाएं होती हैं उनको यहां पर नर्मदा स्नान भी कराया जाता है। यह क्रम वर्षों से चल रहा है। नर्मदा स्नान का सिलसिला भी रात 12 बजे से शुरू हो जाता है, जो अमावस्या को दिनभर चलता है। यहां से लोग स्नान करके मां बिजासन धान सलकनपुर पहुंचते हैं एवं मातारानी के दर्शन करके अपने जीवन को धन्य मनाते हैं। इस दौरान जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन सहित स्थानीय प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है।
ये है आंवलीघाट की पौराणिक मान्यता –
आंवलीघाट का आध्यात्मिक दृष्टि से खासा धार्मिक महत्व है। बड़ी संख्या में श्रृद्धालु दूर-दूर से मॉ नर्मदा में डुबकी लगाने पहुंचते हैं। यहां पर हत्याहरणी हथेड़ नदी एवं नर्मदा का संगम स्थल हैं। इस कारण इसका महत्व और अधिक है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान कुछ समय यहां बिताया था। एक किवदंती यह भी प्रचलित है कि महाभारत युग में भीम द्वारा मां नर्मदा से विवाह करने के लिए नर्मदा नदी का जल प्रवाह रोकने के लिए जो चट्टाने यहां नर्मदा में डाली थीं, वह आज भी वहीं जमीं हैं। एक अन्य किवदंती के अनुसार लक्ष्मी जी रथ पर सवार होकर यहां कुंती से मिलने आई थी। उस रथ के पहियों के निशान आज भी पत्थरों पर दिखाई देते हैं। आंवली घाट पर लक्ष्मी कुंड, ब्रह्म पाश, भावनाथ बाबा की टेकरी, छोटे दादा धूनीवाले का स्थान नर्मदा मंदिर, हनुमान मंदिर, राम जानकी मंदिर दोनों ओर प्राचीन काल का नर्मदा मंदिर एवं राम जानकी मंदिर सहित अन्य मंदिर स्थित हैं।
कालियादेव मेला
कालियादेव मेला जनजातीय संस्कृति और परंपरा की अनुपम छटा बिखेरता है। आज भी जनजातीय वर्ग के लोग अपनी अमूल्य सांस्कृतिक विरासत संजोए हुए हैं। वे आदिम संस्कृति को छोड़े बिना वर्तमान के साथ संतुलन स्थापित कर अपने जीवन में वास्तविक आनंद पलों को खोज लेते हैं। इछावर तहसील के ग्राम नादान के पास सागौन के घने जंगलों में कालिया देव नामक स्थान है। यहां से निकली सीप नदी पर कालिया देव का झरना है। यहॉं हर वर्ष पितृ मोक्ष अमावस्या पर रात्रि में मेला लगता है। झरने के पास ही एक छोटा मंदिर है। कालिया देव मंदिर के नीचे एक गहरा कुंड हैं जिसमें सीप नदी का पानी गिरता है। इस गहरे कुंड को यहां के जनजातीय बंधु पाताल लोक का रास्ता भी कहते हैं। यहॉ कई ऐसे स्थल हैं जो प्राकृतिक सौंन्दर्य से भरे हैं। भूतड़ी अमावस्या पर इस क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के महिला, पुरूष, बच्चे बड़ी संख्या में शाम को पहुंचने लगते हैं। सीप नदी में कालियादेव की पूजा अर्चना करते हैं। यहॉं रात्रि में विशाल मेला लगता है। इस मेले में एक लाख से अधिक लोग आते हैं।

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