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पार्वती नदी का जलस्तर खतरे में!

सीहोर। आष्टा नगर की जीवन रेखा मानी जाने वाली पार्वती नदी का जलस्तर लगातार तेजी से गिर रहा है, जिससे आगामी गर्मी के मौसम में नगरवासियों को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। बड़ी बात यह है कि नगर पालिका द्वारा पानी को समय से पहले रोकने के प्रयासों के बावजूद लगातार हो रही पानी की चोरी को रोकने में ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी नाकाम साबित हो रहे हैं।
बताया जाता है कि पुराने बस स्टैंड पुल से लेकर लगभग 3 किलोमीटर के क्षेत्र में किसानों द्वारा खेतों में सिंचाई के लिए धड़ल्ले से मोटरें लगाकर रात-दिन नदी का पानी चोरी किया जा रहा है। हालांकि नगर पालिका ने इस चोरी को रोकने के लिए रात-दिन गश्ती टीम बनाई है। ये टीमें अलग-अलग पारी में मोटर बोट के माध्यम से नदी में सर्च करती हैं और पानी चुराने वाले किसानों की मोटरें जब्त करने का प्रयास कर रही हैं। नगर पालिका का दावा है कि इस प्रयास के तहत अभी तक 10 मोटरें जब्त की जा चुकी हैं, लेकिन इसके बावजूद चोरी लगातार जारी है, जिसका नतीजा यह है कि नदी का जल स्तर लगातार तेजी से गिर रहा है और अब तक 2 फीट से भी अधिक पानी कम हो चुका है। यदि पानी की चोरी पर अंकुश नहीं लगाया गया तो नए साल की शुरुआत में ही नगर को पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
लाखों का खर्च भी नहीं रोक पाया चोरी
पानी की चोरी रोकने के लिए नगर पालिका द्वारा 9 कर्मचारियों को अलग-अलग शिफ्टों में तैनात किया गया है, जो मोटर बोट से नदी किनारों पर नजर रखते हैं।
खर्च का हिसाब: इस गश्त पर प्रतिदिन लगभग 20 लीटर पेट्रोल की खपत होती है, जिसका खर्च 2 हजार से अधिक होता है। अनुमान है कि 8 महीने तक चलने वाले इस काम में केवल पेट्रोल पर 5 लाख तक का खर्च आता है, जिसमें 9 कर्मचारियों का वेतन शामिल नहीं है।
लापरवाही पर सवाल: लाखों रुपये खर्च करने और 9 कर्मचारियों की रात-दिन की तैनाती के बावजूद पानी की चोरी का न रुकना, ड्यूटी कर्मचारियों की लापरवाही या फिर पानी चोरी करने वालों को हरी झंडी मिलने की ओर इशारा करता है।
कम जुर्माना बन रहा बड़ी वजह
रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2025 के 11 महीनों में केवल 10 मोटरें ही जब्त की गई हैं। इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि जब्त की गई मोटरों को जुलाई माह में किसानों की पहचान कर उनसे मात्र 500 का जुर्माना वसूल कर वापस कर दिया जाता है। इस कम जुर्माने के कारण नदी के पानी को चोरी करने वाले किसानों के हौसले बुलंद हैं, क्योंकि उनके लिए 500 का जुर्माना कोई बड़ी बात नहीं है। जलस्तर को बचाने और नगर वासियों को पानी की किल्लत से दूर रखने के लिए नगर प्रशासन को इस मामले में कड़े कदम उठाने और जुर्माने की राशि बढ़ाने की सख्त आवश्यकता है।

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