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सीहोर जिले के इन थाना प्रभारी की हो रही तारीफ, क्योंकि किया कुछ ऐसा काम…

सीहोर। सीहोर जिला पुलिस यूं तो अपने कार्यों को लेकर लगातार चर्चाओं में है। पुलिस अधीक्षक मयंक अवस्थी के निर्देशन एवं एएसपी गीतेश गर्ग के मार्गदर्शन में सभी एसडीओपी, थाना प्रभारी लगातार जहां बड़ी-बड़ी घटनाओं का खुलासा कर रहे हैं तो वहीं हाल ही में सीहोर में हुए रुद्राक्ष महोत्सव के दौरान संभाली व्यवस्थाओं ने भी सीहोर पुलिस को चर्चाओं में ला दिया है। लाखों की भीड़ को सुरक्षित अपने घरों तक पहुंचाकर सीहोर जिला पुलिस ने एक बार फिर तारीफ बंटोरी है। रुद्राक्ष महोत्सव में शामिल होने आए लोगों की सुरक्षा के साथ-साथ उनको रेलवे स्टेशन पर जाकर खाना वितरित करना भी सीहोर पुलिस के लिए तारीफ का अवसर लेकर आया। इधर सीहोर जिले के आष्टा थाना प्रभारी पुष्पेंद्र राठौर की एक पोस्ट भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है। इसमें उनके कार्यों की भी तारीफ हो रही है। हम आपको पढ़वा रहे हैं थाना प्रभारी पुष्पेंद्र राठौर की वह पोस्ट, जो उन्होंने सोशल मीडिया पर जारी की।
ये है पोस्ट-
मैं सौलह तारीख को अत्यधिक भीड़भाड़ होने के कारण काफी ड्यूटी करने के बाद थककर अस्थाई बस स्टैंड के चौराहे पर अपनी सरकारी गाड़ी में कुछ पल आराम करने के लिए बैठा था, तभी एक बूढ़ी महिला जिसकी उम्र करीब 60 साल की होगी, वह मेरे पास आई और बोली कि मेरी बेटी और जमाई नहीं मिल रहे हैं, खो गए हैं। मैं भी थका हुआ था। मैं गाड़ी में बैठा हुआ था वह सामने दरवाजे के पास खड़ी हुई थी, मैंने साधारण सा जवाब दिया कि मिल जाएंगे अम्मा जी। इधर-उधर तलाश कर लो। वह महिला महाराष्ट्र से थी, उसकी बोली से लग रहा था कि वह पुलिस से बात करने में भी डर रही थी और बहुत ही सीधी-साधी थी। उसने अपने को नांदुरबार के पास किसी गांव का होना बताया था। मेरे कहने पर वह वहां से चली गई, लेकिन थोड़ी ही देर में वापस आकर बोली मुझे मेरी बेटी और साथी नहीं मिल रहे हैं। शायद मेरे द्वारा उससे प्रेमपूर्वक बातचीत करने से उसे यह अहसास और विश्वास हो गया था कि यह पुलिस वाला मेरी मदद कर सकता है और इसलिए वह डरते हुए फिर से मेरे पास वापस आई थी और रोने लगी तो मैंने उस महिला से पूछा आपकी बेटी का मोबाइल नंबर है क्या आपके पास तो उसने कहा नहीं है। फिर मैंने कहा कि आपका सामान कहां है अम्मा तो वह बोली उन्हीं के पास रह गया। फिर मैंने पूछा अम्मा आपके पास कुछ ओढ़ने के लिए है कि नहीं, क्योंकि उस समय रात में ठंड लगना शुरू हो रही थी, तो वह महिला बोली कि ओढ़ने के लिए भी मेरे पास कुछ नहीं है। तो मैंने उस महिला से पूछा कि आपके पास कितने रुपए हैं तो उसने ब्लाउज से अपना बटुवा निकाला और उसमें रखे दो 50 के नोट मुझे दिखाए और रोने लगी। मैंने सोचा इस बूढ़ी अम्मा की कोई व्यवस्था नहीं की तो यह रात में ही मर सकती है। मैंने उस महिला से कहा कि अम्मा तुम्हें पुलिस थाना पर छुड़वा देते हैं वहां पर तुम्हारे खाने और सोने की व्यवस्था हो जाएगी, वह बोली नहीं मेरी बेटी मुझे यहां तलाश कर रही होगी। मैं कहीं नहीं जाउंगी। मैंने कहा कि मैं तुम्हें नांदुरबार की गाड़ी में बिठवा देता हूं, ताकि तुम सीधे नांदुरबार पहुंच जाओ और वहां से अपनी बच्ची से संपर्क करके उसे भी बुला लेना, वह सीधी-साधी महिला बोली- नहीं मेरी बेटी मेरे लिए यहां इंतजार कर रही होगी। वह परेशान हो जाएगी। मैंने कहा कि मैं ट्रेन से छुडवा देता हूं। यदि आपको गाड़ी वाले से डर है या विश्वास नहीं है तो भी वह राजी नहीं हुई। फिर मैंने कहा अम्मा मेरी ड्यूटी का कोई समय नहीं है, कब तक चलेगी नहीं तो मैं तुम्हें अपने थाने पर ले जाता और वहां से तुम्हारी नांदुरबार जाने की व्यवस्था कर देता तो भी वह राजी नहीं हुई और रोती रही। फिर मैंने सोचा अब क्या करूं इसके पास न तो कोई ओढ़ने की सामग्री है, न खाने-पीने की और ना रुपए है। मैंने उस महिला को एक चिट्ठी लिखकर दी एक छोटे से कागज पर जिस पर मैंने लिखा- यह महिला जब आप किसी पुलिस वाले से सहयोग हेतु मिले तो मुझे टीआई आष्टा को सेट पर कॉल करें या मेरे नंबर 9926619079 या 9479990899 पर कॉल करें। इन्हें इनके निवास पर पहुंचाने में सहयोग करना है और मैंने उस महिला को वह चिट्ठी दी, साथ ही 500 रुपए दिए और कहा कि अम्मा इन 500 रुपए में से 200 रुपए का कंबल कुबेरेश्वर धाम पर एक जगह मिल रहा है वहां से ले लेना और 300 रुपए में खाना खाकर अपनी रात गुजार लेना और यदि तुम्हारी बेटी तुम्हें कल तक नहीं मिलती है तो परेशान मत होना और सुबह यह चिट्ठी जो मैंने तुम्हें दी है यह किसी पुलिस वाले के हाथ में ही देना, ताकि वह तुम्हारे बारे में मुझे सूचित कर सके और मैं तुम्हारी नांदुरबार जाने की व्यवस्था कर सकूं। वह अम्मा मुझसे रुपए नहीं ले रही थी फिर मैंने जबरदस्ती उसे रुपए दिए और उस अम्मा को ढांढस बंधाया। फिर मैं रात में यातायात व्यवस्था बनाने में लग गया और अगले दिन भी मैं अपनी ड्यूटी करने लग गया और उस अम्मा के बारे में ज्यादा नहीं सोचा। केवल सोचा कि जाने क्या हुआ होगा उसका, क्योंकि उसका कोई फोन नहीं आया। कुबेरेश्वर धाम में नेटवर्क जाम चल रहा था, फिर रात को करीब 11 बजे जब मैं ड्यूटी पूरी करके आष्टा की ओर आया तो मेरे मोबाइल में नेटवर्क आया तो मुझे एक अंजान नंबर से कई कॉल थी। उसी नंबर के वाट्सएप मैसेज भी थे, जिसमें उस बुढ़ी अम्मा का फोटो था और नाम, पते की जानकारी और लिखा था कि ‘सर जी आपका बहुत शुक्रगुजार हूं’। आपके सहयोग के कारण हमारी माताजी सुखरूप घर लौट आई है, साथ ही मेरे द्वारा दिए गए 500 रुपए भी उन्होंने मुझे आनलाईन देकर उसका भी स्क्रीन शॉट वाट्सएप किया था। मैंने उस नंबर पर फोन लगाया। फोन अनिल सोनवने जो बूढ़ी अम्मा का लड़का था, उसने उठाया और मुझे बताया कि हमारी माताजी घर पर लौट आई हैं आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। मैंने कहा भई मुझे रुपए देने की इतनी जल्दी क्या थी, मैंने थोड़े ही आपसे रुपए मांगे थे। उन्होंने कहा कि साहब आपको तो लाखों रुपए भी दें तो कम है, क्योंकि हमारी माता जी ऊंचा सुनती है। पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिन आपकी चिट्ठी मात्र से वह हमारे गांव पहुंच गई। मैंने पूछा पूरी घटना कैसे घटी तो उन्होंने बताया कि आप से मिलने के बाद अम्मा ने रात कुबेरेश्वर में ही गुजारी। फिर अगले दिन भी मेरी बहन नहीं मिली तो अम्मा बस में मेरे द्वारा दी गई चिट्ठी को दिखाते हुए नांदुरबार आ गई और वहां से अपने गांव भी चिट्ठी दिखाते हुए ही आ गई। उन्होंने यह भी बताया कि केवल उस चिट्ठी के कारण उन्हें कहीं भी कोई परेशानी नहीं हुई। किसी ने पैसे भी नहीं लिए और सभी ने अम्मा को घर पर पहुंचाने में मदद की। हम दोनों की बातचीत में अम्मा के लड़के ने कहा कि आप कभी भी इधर आएं तो हमारे यहां जरूर-जरूर आना पूरे परिवार सहित हम आपका इंतजार करेंगे और मैं भी आपसे मिलने आष्टा जरूर आऊंगा। हमारी बातचीत ऐसे होने लगी जैसे हम काफी समय से एक-दूसरे से परिचित हैं। मुझे ऐसा लगा मानो मैं कुबेरेश्वर धाम में जो श्रद्धालुओं की सेवा कर पुण्य कमाना चाहता था वह मैंने कमा लिया। ऐसा भी लगा कि मैंने इस काम से भगवान को खुश कर दिया। मैं तभी यह भी सोचने लगा कि आज भी भारत में ऐसे भी लोग हैं तो एक पुराने से कागज पर लिखी चंद लाईनों को देखकर एक बूढ़ी महिला की हर संभव मदद करने को राजी हो जाते है। जय हिंद…

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