राजनीतिक

 राजनैतिक मजूबरी के कारण एनसीपी प्रमुख पवार ने दिखाई उद्धव गुट के प्रति सहानभूति 

मुंबई। शिवसेना को लेकर आए निर्वाचन आयोग के फैसले पर बहस में पड़ने से दिग्गज नेता और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इनकार कर दिया था। हालांकि, पवार की मामले से दूरी ज्यादा दिन नहीं रही और उन्होंने आयोग पर हमला बोल ही दिया। अब सियासी गलियारों में चर्चाएं हैं कि एनसीपी के अचानक यूटर्न के मायने क्या हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के फैसले पर रोक लगाने से इनकार किया है। बीते शुक्रवार को ही आयोग ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाले गुट को शिवसेना और चिह्न तीर-कमान सौंप दिया। एनसीपी प्रमुख ने कहा, मैंने कभी नहीं देखा कि चुनाव आयोग एक पार्टी की पूरी ताकत ले ले। पहले भी इसतरह के उदाहरण हैं, जहां राजनीतिक दल बंटे हैं। हमने कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आई) को देखा है। कांग्रेस (आई) पार्टी का नाम लेने वालीं दिवंगत इंदिरा गांधी ने हाथ का चिह्न लिया। जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस से अलग हो रही थी, तब हमने नया नाम और चिह्न लिया। किसी ने कभी भी वास्तविक पार्टी और निशान पर दावा नहीं किया।
बताया जा रहा हैं, इसके द्वारा पवार की कोशिश विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक गठबंधन को बनाकर रखा जा सके। वहीं, दूसरी रणनीति को इस तरह से देखा जा सकता है कि एनसीपी उद्धव के प्रति सहानुभूति का इस्तेमाल कर ठाकरे के गढ़ में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटी हुई है। ताजा सियासी घटनाक्रमों के जरिए पवार पिंपरी-चिंचवाड़ में अपनी पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं, जहां उद्धव की सेना और एनसीपी में खींचतान सामने आई थी। हालांकि, यहां भी जीत पवार की हुई और मैदान में नाना काते हैं। जबकि, उद्धव की पसंद के उम्मीदवार राहुल कलाते निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं। पिंपरी चिंचवाड़ में 26 फरवरी को उपचुनाव होने हैं।

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