धर्म

जीवन में विचार की आवश्यकता

कुटिल एवं असत्य विचार से मुक्ति का सरल उपाय सुविचार की भावना दृढ़ करना है। शांतिदायक सुविचार की गंगा प्रवाहित करने पर ही हम मानसिक दुर्बलता से मुक्त हो सकते हैं। प्रत्येक विचार अंत:करण में एक मानसिक मार्ग का निर्माण करता है। हमारी समस्त आदतें ऐसे ही मानसिक मार्ग हैं, जो लगातार एक ही प्रकार के चिंतन मनन से विनिर्मित हुए हैं। तुम मन: प्रदेश में उत्तम रचनात्मक विचार ही प्रवेश करने दो। उत्कृष्ट विचारों को ही मन मस्तिष्क पर अंकित करो। जो प्रेम, ईश्वर , नीति के विरोधी विचार हों, उन्हें निकाल फेंको। जब तुम्हारे विचारों का केन्द्र भगवान, अल्लाह, ईश्वर  होंगे, तो सुनिश्चित दिशाओं में ही हृदय का विकास होगा।  
संसार के महापुरुषों ने जो अद्भुत कार्य किये हैं, विचार कला मर्मज्ञ के लिए उन कार्य का संपादन कदापि दुष्कर नहीं है। विचार करो कि तुम किस तत्त्व में, किस बात में, किस दशा में पिछड़ रहे हो? तुम्हारे मार्ग में कौन-कौन बाधाएं हैं? तुम गीली मिट्टी के नष्ट हो जाने वाले पुतले के सदृश, केवल देह नहीं हो। तुम अमर आत्मा हो। तुम सत्य, स्वतंत्र, शिव, कल्याण, बलवान, आनंदमय, निदरेष, स्वच्छ और पवित्र हो। तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है। परमेर इस शक्ति का पुंज है। तुम परमेर के राजकुमार हो। अतएव तुम्हारी पैतृक सम्पत्ति शक्ति ही है। शक्ति तुम्हारे अंतर तथा बाह्य अंगों में पूर्णत: व्याप्त है। तुम्हारे रोम-रोम में संचार कर रही है। तुम्हारे नेत्रों में उसी शक्ति का प्रकाश है। अनंत शक्ति का विशाल समुद्र तुम्हारे पीछे है। निर्बलता, निराशा, भय तथा चिंता के संशयदायक विचार हृदय मंदिर से निकाल शक्ति के विचारों में लीन हो जाओ। परमेर ने सबको समान शक्तियां प्रदान की हैं। ईश्वर , अल्लाह के यहां अन्याय नहीं है।  कितनी ही शक्तियों से कार्य न लेकर तुम उन्हें पुंठित कर डालते हो।  
अन्य व्यक्ति उसी शक्ति को किसी विशेष दिशा में मोड़कर उसे अधिक परिपुष्ट एवं विकसित कर लेते हैं।  अपनी शक्तियों को जाग्रत, विकसित कर लेना या शिथिल पंगु बना लेना स्वयं के हाथ में है। यदि तुम मन की गुप्त महान सामथ्यरे को जाग्रत कर लो और लक्ष्य की ओर प्रयत्न और उत्साहपूर्वक अग्रसर होना सीख लो तो जैसा चाहो आत्म निर्माण कर सकते हो। मनुष्य के मन में जिन महत्वाकांक्षाओं का उदय होता है और जो-जो आशापूर्ण तरंगें उदित होती हैं, वे अवश्य पूर्ण हो सकती हैं, यदि वह दृढ़ निश्चय द्वारा अपनी प्रतिभा जगा लें। 

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