मोदी के खिलाफ वाराणसी से कांग्रेस प्रत्याशी रहे अजय राय अब विधायक के लिए मैदान में
वाराणसी
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसदीय चुनाव में लगातार दो बार चुनौती देने वाले कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय पर प्रियंका गांधी ने एक बार फिर भरोसा जताया है। अजय राय को विधानसभा चुनाव के लिए पिंडरा से टिकट दिया गया है। पिंडरा सीट भले ही वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में नहीं आती लेकिन वाराणसी जिले की सीट मानी जाती है। अजय राय पहले भी इस सीट से विधायक रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में अजय राय भाजपा प्रत्याशी अवधेश राय से हार का मुंह देखना पड़ा था।
भाजपा से शुरू हुआ था राजनीतिक सफर, पांच बार रहे विधायक
अजय राय का राजनीतिक सफर 1993 में बीजेपी की बड़ी नेताओं में शुमार कुसुम राय के संपर्क में आने के साथ शुरु हुआ। भाजयुमो के अध्यक्ष रामाशीष राय का भी समर्थन हासिल किया और वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हो गए। पहली बार 1996 में भाजपा ने उन्हें वाराणसी की ही कोलअसला (अब पिंडरा) सीट पर वामपंथ के गढ़ को ढहाने की जिम्मेदारी सौंपी। कोलअसला सीट पर लगातार 9 बार से सीपीआई के बड़े नेता रहे ऊदल का कब्जा था। अजय राय भाजपा की उम्मीदों पर खरा उतरे और ऊदल के उस वर्चस्व को समाप्त कर पहली बार भगवा फहराया। जीत का अंतर भले ही महज 484 वोटों का था, लेकिन जीत के मायने बड़े थे। इस जीत के साथ अजय राय ने जहां पार्टी की झोली में एक नई विधानसभा डाल दी वहीं अपने अतीत की बाहुबली की छवि को भी काफी हद तक बदलने में कामयाब हुए। इन दोनों लिहाज से इसे बड़ी जीत बताया गया। अजय राय ने इसके बाद 2002 और 2007 दोनों चुनाव आसानी से जीत लिये।
लोकसभा का टिकट नहीं मिलने पर भाजपा छोड़ी
तीन बार के विधायक अजय राय को अब सियासत में बड़ी भूमिका की तलाश थी और तभी 2009 लोकसभा चुनाव का वक्त आ गया। अजय राय बीजेपी से टिकट चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें अनसुना कर दिया। पार्टी ने तब डॉ मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी से उम्मीदवार बना दिया। यह अजय राय को नागवार गुजरा और उन्होंने पार्टी छोड़ दी। इसके साथ ही विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया। भाजपा से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने सपा का दामन थाम। सपा ने उनके मन की मुराद पूरी कर दी। उन्हें डॉ जोशी और राय के कट्टर विरोधी मुख्तार अंसारी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए वाराणसी संसदीय सीट से मैदान उतार दिया। वह 2009 का वाराणसी का लोकसभा चुनाव भी यादगार बन गया। अंतिम वक्त में हुए मतों के ध्रुवीकरण में डॉ जोशी ने जीत हासिल की और बसपा प्रत्याशी मुख्तार अंसारी दूसरे नंबर पर रहे। अजय राय भले हार गए लेकिन अपनी हैसियत का अहसास करा दिया। उन्होंने तब बनारस के सीटिंग एमपी रहे कांग्रेस के डॉ राजेश मिश्र को पीछे धकेल कर तीसरा स्थान हासिल कर लिया।
लोकसभा चुनाव हारने के बाद अजय राय फिर कोलअसला विधानसभा क्षेत्र की ओर लौटे। इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें अजय राय ने निर्दल दावेदारी पेश की। लोकसभा हारने वाले अजय राय ने सपा का दामन भी छोड़ दिया। लेकिन कोलअसला में उनका दबदबा कायम रहा और उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ही जीत हासिल कर ली। उसी वक्त कांग्रेस के दिग्गज राजेशपति त्रिपाठी ने उनसे संपर्क साधा और अजय राय कांग्रेसी हो गए। कांग्रेस के साथ वह लगातार सड़क पर नजर आए। हर छोटे-बड़े मुद्दों को उठा कर विरोध किया। इसका असर रहा कि कांग्रेस ने उन्हें मोदी के खिलाफ मैदान में उतारा। अब एक बार फिर कांग्रेस ने अजय राय को उनकी परंपरागत सीट पिंडरा से मैदान में उतार दिया है। उनके पास पिछले चुनाव में मिली हार का बदला लेने का समय है। कांग्रेस ने अजय राय के साथ ही वाराणसी के जिला अध्यक्ष राजेश्वर पटेल को भी टिकट दिया है। वह बनारस की ही रोहनिया सीट से मैदान में उतरे हैं। पटेल बाहुल्य रोहनिया सीट पर कभी केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने जीत हासिल कर विधानसभा में कदम रखा था।