इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : चार्जशीट के बाद भी पुलिस को विवेचना का अधिकार
प्रयागराज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी संज्ञेय अपराध की चार्जशीट अदालत में दाखिल किए जाने और मजिस्ट्रेट के उस पर संज्ञान लिए जाने के बाद भी पुलिस को उस मामले में अग्रिम विवेचना करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस के पास विवेचना की निर्बाध शक्ति है, वह चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी आगे की विवेचना जारी रख सकती है। इसके बाद पुलिस के पास संपूरक आरोप पत्र दाखिल करने का अधिकार है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने आगरा के सुबोध जैन की याचिका खारिज करते हुए दिया है। याची का कहना था कि उसका सराफा का व्यवसाय है। एक आपराधिक मामले में लूटा गया माल खरीदने के आरोप में पुलिस उसके खिलाफ जांच कर रही है जबकि याची का नाम एफआईआर में दर्ज नहीं है। इस मामले में पुलिस चार लोगों के खिलाफ पहले ही आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है और अदालत ने उस पर संज्ञान भी ले लिया है। याची के अधिवक्ता का कहना था कि एक बार पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी और मजिस्ट्रेट ने उस पर संज्ञान ले लिया तो उसके बाद विवेचना समाप्त हो जाती है। फिर पुलिस कोर्ट की अनुमति के बगैर अग्रिम विवेचना नहीं कर सकती है।
याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कहा कि पुलिस के पास विवेचना की निर्बाध शक्ति है और चार्जशीट दाखिल होने एवं मजिस्ट्रेट के उस पर संज्ञान लेने के बाद भी पुलिस अग्रिम विवेचना कर सकती है। इसके लिए उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। पुलिस के पास संपूरक चार्जशीट दाखिल करने का विकल्प है। कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 173 (8) का हवाला देते हुए कहा इस धारा के प्रावधान से यह स्पष्ट है कि संज्ञेय अपराध में पुलिस को चार्जशीट दाखिल होने व मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लिए जाने के बावजूद अग्रिम विवेचना जारी रखने का अधिकार है। इसके लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति लेना अनिवार्य नहीं है।