बिहार: नए सिरे से होगी दूध-दही की ब्रांडिंग, डिप्टी सीएम बोले- पांच जिलों में बनेंगी सरकारी गौशालाएं
पटना
बिहार के पांच सरकारी गौशाला विहीन जिलों में गौशाला की स्थापना होगी। साथ ही राज्य की सभी सरकारी गौशाला के उत्पादों मसलन दूध, दही, छाछ, घी, गोबर और गो मूत्र की नए सिरे से ब्रांडिंग होगी। उप मुख्यमंत्री व पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री तार किशोर प्रसाद ने विभाग की ओर से बुधवार को बामेती सभागार में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए यह जानकारी दी।
गोवंश हमारी प्राचीन संस्कृति का हिस्सा
डिप्टी सीएम ने कहा कि ग्रामीण समाज में पशुधन एवं मनुष्य एक दूसरे के पूरक रहे हैं। गोवंश हमारी प्राचीन संस्कृति का हिस्सा रही है। सरकार देसी नस्ल की गायों के संरक्षण और संवर्धन की व्यापक कार्ययोजना पर काम कर रही है। इसमें गौशाला की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि बिहार के 33 जिलों में 86 निबंधित गौशाला स्थापित हैं, जिसमें 55 चल रही हैं। 31 गौशाला बंद हैं। ऐसे में गौशाला के कुशल प्रबंधन और विकास में अध्यक्ष -सह- अनुमंडल पदाधिकारी की बहुत बड़ी जिम्मेवारी है।
पांच जिलों के लिए करें विशेष पहल
कार्यशाला में उपस्थित सभी गौशाला के अध्यक्ष -सह- अनुमंडल पदाधिकारी एवं सचिवों को निर्देश देते हुए तारकिशोर ने कहा कि जिन पांच जिलों कैमूर, पूर्णिया, अरवल, बांका और शिवहर में निबंधित गौशाला नहीं है, वहां इसके लिए विशेष पहल करें। प्रविधान के अनुसार नियमित बैठक करें। साथ ही, जहां गौशाला अक्रियाशील हैं या प्रबंध समिति का गठन नहीं हुआ है, वहां कुशल प्रबंधन हेतु आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
देसी गायों के लिए जन जागृति भी है जरूरी
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि देसी गाय के संवर्धन और संरक्षण से दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ उससे प्राप्त होने वाले पंचगव्य और गोमूत्र के महत्व, व्यवसायीकरण और विपणन को बढ़ावा देने हेतु व्यापक जन-जागृति की भी जरूरत है। गाय का गोबर और गोमूत्र दोनों ही बहुगुणी और औषधीय हैं। इनके उपयोग से मृदा स्वास्थ्य में भी सुधार होगा और ऊसर भूमि को कृषि योग्य बनाया जा सकता है। कार्यशाला के दौरान पशुपालन निदेशक विजय प्रकाश मीणा ने गौशाला से संबंधित प्रविधानों एवं योजनाओं के क्रियान्वयन, प्रबंधन एवं देसी गाय से प्राप्त दूध के महत्व, गौशाला की चुनौतियां इत्यादि बिंदुओं की जानकारी दी।