भाजपा ने फतह कर लिया सपा का सियासी किला, इत्रनगरी में क्लीन स्वीप
कन्नौज
अपनी स्थापना के बाद चुनाव दर चुनाव में मिलती रही कामयाबी से इत्रनगरी को सियासत की दुनिया में सपा के गढ़ का तमगा मिल गया था। सपा को हर चुनाव में यहां से कामयाबी मिलती रही है। लेकिन इस बार उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। 2012 के चुनाव में तीन के तीनों सीट जीतकर क्लीन स्वीप का रिकॉर्ड बनाने वाली सपा इस बार पूरी तरह साफ हो गई। भाजपा ने यहां रिकॉर्ड प्रदर्शन करते हुए पहली बार तीनों सीट पर क्लीन स्वीप किया है।
पिछले करीब तीन दशक के दौरान हुए विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में मिली लगातार कामयाबी से कन्नौज को सपा का गढ़ कहा जाने लगा था। लेकिन पिछले पांच सालों में इस दुर्ग को भाजपा ने ध्वस्त कर दिया है। सपा को यहां शिकस्त मिलने का सिलसिला 2017 के विधानसभा चुनाव से ही शुरू हो गया था, जब उसे तीन में दो सीट भाजपा के हाथ गंवानी पड़ी थी। तब मोदी की लहर के बावजूद सपा सदर सीट का किला बचा ले गई थी, लेकिन बाकी की दोनों सीट पर करानी हार हुई थी। उसके ठीक दो साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा को यहां तगड़ा झटका तब लगा जब खुद सपा प्रमुख की पत्नी व दो बार की सांसद डिंपल यहां से चुनाव हार गईं। उसके बाद तो निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में भी सपा यहां सिमटती चली गई। उसके उलट भाजपा का दायरा बढ़ता चला गया। सपा को उम्मीद थी कि अपनी सरकार में कराए गए काम का हवाला देकर वह विधानसभा चुनाव में वापसी करेगी, लेकिन उसके इस मंसूबे पर भाजपा ने पूरी तरह से पानी फेर दिया।
बसपा की कमजोरी सपा पर पड़ी भारी
यह भी सही है कि सपा ने इस बार जोर खूब लगाया। अपने सक्रिय संगठन के बूते जिले भर में खूब तैयारी की गई। वोटों के नतीजे भी इस तरफ इशारा करते हैं। हर सीट पर उसने एक लाख वोट का आंकड़ा पार किया। भाजपा तीनों सीट पर सपा से कड़े मुकाबले के बाद ही जीत सकी। इसके पीछे एक अहम वजह बसपा का कमजोर प्रर्दशन भी है। चुनाव के दौरान बसपा का संगठन कभी भी सक्रिय नहीं दिखा। यहां तक कि इस बार बसपा प्रमुख ने यहां कोई सभा भी नहीं की। नतीजा यह हुआ कि बसपा ने तीनों ही सीट पर कमजोर साबित हुई। इसका नुकसान सीधे तौर पर सपा को ही हुआ है।
राशन, सुशासन से गांव में मजबूत हुई भाजपा
पिछले लगातार कई चुनाव में मिल रही कामयाबी से उत्साहित कार्यकर्ताओं की मेहनत के साथ ही केंद्र व प्रदेश सरकार की योजनाओं का गांव तक पहुंचना भी भाजपा के लिए कारगर साबित हुआ। कोरोना काल में मुफ्त राशन की स्कीम ने जरूरतमंद परिवार तक पार्टी की पहुंच बढ़ाई। सियासी जानकारों का मानना है कि इससे न सिर्फ नया वोटर तैयार हुआ, बल्कि बसपा का कोर वोटर का भी भाजपा की तरफ झुकाव रहा।
तीनों सीट जीत कर सांसद सुब्रत पाठक ने बढ़ाया अपना कद
सपा को उसके घर में पहले ही पटखनी दे चुके सांसद सुब्रत पाठक ने पंचायत चुनाव में ही अपने तेवर दिखा दिए थे। सभी ब्लॉक और जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर पार्टी का कब्जा करके उन्होंने इत्रनगरी की सभी सीट पर भगवा लहराने का वादा किया। नतीजों से यह साफ जाहिर है कि न सिर्फ संकल्प पूरा हुआ, बल्कि उनके सियासी कद में भी इजाफा कर गया।