राज्य

भवानी बहादुर सिंह पर खैरागढ़ में दांव लगा सकती है कांग्रेस, गिरवर भी पीछे नहीं

राजनांदगांव
पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं ऐसे में खैरागढ़ की रिक्त सीट पर उपचुनाव की तारीख कभी भी घोषित हो सकती है,ऐेसे में कयास लगने भी शुरू हो गए हैं कि कौन-कौन हो सकते हैं प्रत्याशी। चूंकि यहां के विधायक थे छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के देवव्रत सिंह,जो काफी कम वोटों से चुनाव जीते थे। लेकिन चुनाव के बाद उनकी नजदीकियां कांग्रेस के साथ बढ़ गई थी और वे पार्टी में शामिल होने की तैयारी में थे कि उनका आकस्मिक निधन हो गया। चूंकि उनके परिवार के बीच जिस प्रकार का विवाद अभी छिड़ा हुआ है कांग्रेस इससे परे यदि राजपरिवार का कोई सदस्य मैदान में उतारता है तो इस सीट पर स्व शिवेन्द्र बहादुर व गीता देवी सिह के पुत्र भवानी सिंह को मौका दे सकती है। हालांकि पूर्व पराजित प्रत्याशी गिरवर जंघेल भी सक्रिय बने हुए हैं। लेकिन पिछले चुनाव में वे 30 हजार वोटों से पीछे थे। जबकि मात्र 870 वोट से हारने वाले भाजपा के कोमल जंघेल का इस बार भी मैदान में उतरना लगभग तय है और वे तैयारी भी उसी लिहाज से कर रहे हैं। एक अन्य नाम डा.रमनसिंह के भांजे विक्रांत सिंह का भी आ रहा है।

पिछले विधानसभा चुनाव में पहले तीन प्रत्याशियों में देवव्रत को 61516 वोट,कोमल जंघेल को 60646 वोट और गिरवर जंघेल को 31811 वोट मिले थे। भाजपा -कांग्रेस की लड़ाई में देवव्रत चुनाव जीत गए थे। जातिगत समीकरण के लिहाज से देखे तो लोधी बाहुल्य इलाके में कहीं न कहीं वे चुनाव को प्रभावित तो करते हैं। जहां तक भवानी सिंह के नाम आने का सवाल है,इस परिवार की 10 जनपथ  मेंअच्छी पैठ रही है और कांग्रेस पार्टी के प्रति भी उनकी समर्पण भावना पर किसी से छुपी नही है। राजनीतिक पृष्ठभूमि के परिवार से जो राजघराने से तालुकात रखता है अब राजनांदगांव जिले में महज भवानी बहादुर सिंह एक ऐसी शख्सियत बचे हैं जो कांग्रेस के लिए अपने आप को सामान्य कार्यकर्ता के बराबर ही मानते हैं। सामान्य सा उनका रहन-सहन और उच्च शिक्षा हासिल करने के बावजूद ग्रामीणजनों के बीच और उनकी समस्याओं को जिलाधीश हो, प्रभारी मंत्री हो या मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक समय-समय पर अवगत कराते रहते है। कांग्रेस पार्टी की मजबूती के लिए कार्य करते ही नजर आए हैं। राजनांदगांव लोकसभा से उनके पिता स्व शिवेन्द्र बहादुर सिंह, डोगरगांव विधानसभा से विधायक व मंत्री उनकी माता स्व गीता देवी सिंह का क्षेत्र के विकास मे काफी योगदान रहा है।

खैरागढ़ उपचुनाव को जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर भी प्रत्याशी तय किये जाते रहे हैं लेकिन पिछले दिनों संपन्न नगरपालिका चुनाव के दौरान परिणाम कुछ और ही रहे इसलिए विधानसभा में पार्टी अब रणनीति बदल भी सकते हैं। भाजपा ने कांग्रेस को अच्छी टक्कर भी दी थी। वहीं पिछला चुनाव काफी कम वोटों से हारने वाले कोमल जंघेल भाजपा के तय प्रत्याशी माने जा रहे हैं। लेकिन डा.रमनसिंह के भांजे विक्रांत सिंह का नाम भी तेजी से उभरा है। यदि जातिगत समीकरण को किनारे किया जाता है तो इनकी दावेदारी बन सकती है। क्षेत्र के लोगों ने इनके लिए टिकट की मांग भी भाजपा संगठन से कर चुके हैं। खैरागढ़ नपा चुनाव में लगे आरोप के बाद वे फिलहाल पुलिस रिकार्ड के मुताबिक फरारी की सूची में हैं। बाकी राजनीतिक छवि उनकी अच्छी है। जबकि कांग्रेस के पराजित प्रत्याशी गिरवर जंघेल भी स्वाभाविक दावेदार अपने को मान रहे हैं चूंकि अब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है इसलिए मतदाताओं का रूझान भी पहले जैसे नहीं रहेगा। देवव्रत के बाद उनकी दोनों पत्नियों के बीच जिस प्रकार की कलह चल रही है लगता नहीं कांग्रेस या जोगी कांग्रेस कोई भी इन पर दांव लगायेंगे। हो सकता है एक बार जोगी कांग्रेस सहानुभूति बंटोरने किसी एक को आखिरी समय पर मैदान में उतार दे। फिलहाल उपचुनाव के लिए तारीख घोषित होने का इंतजार है।

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