ED के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह अब लड़ेंगे चुनाव
नई दिल्ली
प्रवर्तन निदेशालय (ED) के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह के चुनाव लड़ने की खबरें हैं। उनके वीआरएस (वॉलेंटरी रिटायरमेंट स्कीम) के अनुरोध को विभाग ने स्वीकार कर लिया है। पिछले साल अगस्त में लखनऊ में तैनात सिंह ने वीआरएस के लिए आवेदन किया था। माना जा रहा है कि वह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं।
सहारा ग्रुप पर कसा शिकंजा
राजेश्वर सिंह वही हैं, जिन्होंने सहारा प्रमुख सुब्रत राय को हाउसिंग फाइनेंस के नाम पर लोगों से गैर-कानूनी तरीके से 24000 करोड़ लेने के आरोप में जेल भिजवा दिया था। वहीं, एयरसेल-मैक्सिस डील को हरी झंडी देने के लिए तब के वित्त मंत्री पी चिदंबरम को पानी पिला दिया। इनके अलावा बतौर ईडी ऑफिसर राजेश्वर सिंह 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले, कोयला घोटाले, कॉमनवेल्थ गेम्स स्कैम जैसे केस की जांच में शामिल रहे हैं। उन्होंने छह महीने पहले विभाग से वीआरएस देने का अनुरोध किया था। अब उन्हें इसकी अनुमति दे दी गई है।
राजेश्वर ने जब वीआरएस के लिए अनुरोध किया था तभी से उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें थीं। हालांकि, सुपर कॉप ने अब तक कोई औपचारिक ऐलान नहीं किया है कि उनका आगे का प्रोग्राम क्या है।
वीआरएस के लिए आवेदन के वक्त राजेश्वर ईडी लखनऊ जोन के संयुक्त निदेशक के रूप में कार्यरत थे। उनकी गिनती सुपरकॉप में होती है। 2009 में उत्तर प्रदेश पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर वह ईडी में शामिल हुए थे। उन्हें 2015 में स्थायी रूप से ईडी कैडर में शामिल कर लिया गया था।
मूल रूप से वह यूपी के सुल्तानपुर जिले के पखरौली के रहने वाले हैं। सिंह उत्तर प्रदेश काडर के प्रोविजनल पुलिस सर्विस (पीपीएस) ऑफिसर हैं। ईडी में उनकी पारी की शुरुआत से उन्हें हाई प्रोफाइल केसों पर काम करने का मौका मिला। एक समय था कि जब उनके कामकाज के तरीके ने मंत्रियों और कॉरपोरेट की नींद उड़ा दी थी।
सहारा मामले से सुर्खियों में आए
बात 2011 की है। तब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एक अधिकारी के खिलाफ अलग-अलग मंत्रालयों और सरकारी निकायों के समक्ष लगभग 50 एक जैसी शिकायतें दर्ज की गईं। वह अधिकारी कोई और नहीं राजेश्वर सिंह ही थे। राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर रक्षा और कानून समेत अलग-अलग मंत्रालयों को सिंह के कामकाज के तौर-तरीकों की जांच की शिकायतें मिलीं। उन पर आय से अधिक संपत्ति के मामले के भी आरोप लगे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा हालांकि, सिंह इनका डटकर मुकाबला करते रहे।
उसी साल मई 2011 में सिंह ने सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय, पत्रकार उपेंद्र राय और सुबोध जैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। राजेश्वर ने शिकायत की थी कि रॉय के साथ उपेंद्र और सुबोध जैन 2जी स्कैम में उनकी जांच में हस्तक्षेप कर रहे हैं। इस जांच के दायरे में सहारा ग्रुप के भी कुछ सौदे थे। कोर्ट ने 2013 में माना था कि इनके खिलाफ केस बनता है। इसके बाद उन्हें नोटिस जारी किया गया था। सहारा इंडिया न्यूज नेटवर्क और उसके सहयोगी संस्थानों को सिंह से संबंधित किसी भी स्टोरी या प्रोग्राम के प्रकाशन और प्रसारण से रोक दिया गया था।
सहारा प्रमुख को हाउसिंग फाइनेंस के नाम पर लोगों से गैर-कानूनी तरीके से 24000 करोड़ लेने के आरोप में जेल भेजा गया था। सहारा समूह की दो कंपनियों ने गैर-कानूनी तरीके से निवेशकों से यह पैसा जमा किया था। इसके बाद साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह को निवेशकों से जुटाई गई रकम को सेबी के एस्क्रो अकाउंट में जमा करने को कहा था। जब सहारा ऐसा नहीं कर पाए तो उन्हें जेल भेज दिया गया था।
एयरसेल-मैक्सिस डील में जब फंस गए चिदंबरम
राजेश्वर सिंह से जुड़ा दूसरा बड़ा मामला एयरसेल-मैक्सिस डील की जांच का है। उन्होंने इस सौदे को हरी झंडी देने के लिए तब के वित्त मंत्री चिदंबरम पर शिकंजा कसा। यह मामला विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) से जुड़ा था। दरअसल, 2006 में एयरसेल-मैक्सिस डील को पी चिदंबरम ने वित्त मंत्री के तौर पर मंजूरी दी थी। हालांकि, आरोप है कि उनके पास तब 600 करोड़ रुपये तक के प्रोजेक्ट प्रपोजल को ही मंजूरी देने का अधिकार था। राजेश्वर सिंह इस मामले में जांच का हिस्सा थे।
आरोप था कि 600 करोड़ रुपये से बड़े प्रोजेक्ट को मंजूरी देने के लिए चिदंबरम को आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति से मंजूरी लेनी जरूरी थी। हालांकि, तत्कालीन वित्त मंत्री ने ऐसा नहीं किया। एयरसेल-मैक्सिस डील केस 3,500 करोड़ की एफडीआई की मंजूरी का था। इसके लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी से मंजूरी ली जानी थी। यह अलग बात है कि नियमों की अनदेखी कर चिदंबरम ने खुद ही इसे मंजूर कर दिया।