चुनावी सफर शशि शेखर के साथ: किसकी सूरत बदलेगा संगम
प्रयागराज
संगम नगरी अपने गौरवशाली इतिहास के साथ-साथ बदलाव के नए दौर से गुजर रही है। परंपरा को पालने के बावजूद आधुनिकता से गुरेज न रखने वाला यह शहर यूपी की सियासत का भी अहम केंद्र रहा है। इस बार के यूपी चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि संगम नगरी नेहरू-गांधी परिवार के बाद उभरे नए राजनीतिक घरानों का कितना साथ देती है।
यह भवन सिर्फ ईंट-गारे का मिश्रण नहीं, कभी स्वराज भवन और आनंद भवन की छतों के साए में मोती लाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू ने संघर्ष की बुनियाद रखी थी। आनंद भवन के आगे पसरे कर्नलगंज और पीछे ऊंघते टैगोर टाउन में नेहरू-गांधी के चर्चे गुम हो चुके हैं। लोग आनंद भवन को सिर्फ अपने गौरवशाली इतिहास की धरोहर मानते हैं। वाट्सऐप के जरिए पहुंचा ज्ञान उन्हें आंदोलित करता रहता है। मुझे मालूम न था कि पुरानी छवियों को धुंधलाने की कोशिशों के बीच कुछ ऐसे विचार सुनने को मिल जाएंगे, जो अप्रत्याशित थे। यहीं महाराष्ट्र के वर्धा से आए किसान बंधु रामेश्वर मानकर और रवीन्द्र मानकर मिले। मैंने उनसे सीधा सवाल किया। आप यहां क्यों आए हैं? जवाब था, ‘नेहरू परिवार ने स्वतंत्रता के लिए बहुत योगदान किया। स्वराज भवन और आनंद भवन से ऐसे बहुत से विचार फूटे जिन्होंने देश की आजादी और नवनिर्माण में बड़ी भूमिका अदा की।’ क्या आप आनंद भवन देखने इतनी दूर से आए हैं? ‘नहीं, हम संगम नहाने आए थे और यहां आकर आनंद भवन न देखते तो यात्रा अधूरी रह जाती।’