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2017 के मुकाबले कितना अलग था अखिलेश यादव का चुनावी अभियान, गठबंधन से टिकट बंटवारे तक हाथ में रखी कमान

 लखनऊ

चुनाव नतीजे जो भी हों, पर अखिलेश यादव के लिए यह चुनाव समर पिछली बार के मुकाबले बिल्कुल अलग रहा। उन्होंने इस बार ज्यादा रणनीतिक कौशल का परिचय दिया। उन मुद्दों से खुद को दूर रखने की कोशिश की, जिनकी वजह से वह पिछली बार सत्ता से बाहर हुए थे। चुनावी घोषणा पत्र से लेकर प्रत्याशी चयन तक और मुद्दों को उछालने से लेकर प्रचार तक वह पहले बेहतर करते नजर आए। अब नतीजे बताएंगे कि यह सारी कवायद कितनी कामयाब रही।

इस बार सारी कमान खुद ही अपने हाथ में रखी

सपा की कमान तो पिछले विधानसभा चुनाव में आ गई थी, लेकिन उस वक्त विवाद के साए कई निर्णय पर हावी थे। इस बार माहौल जुदा दिखा। सारे निर्णय खुद ही लिए। गठबंधन के साथी भी खुद ही तय किए। टिकट वितरण में उनका निर्णय अंतिम रहा। परिवार के लोगों को इससे दूर रखा। टिकट भी नहीं दिए।

शिवपाल को साथ लाए, लेकिन अपर्णा ने छोड़ी पार्टी
चुनाव के वक्त गठबंधन करते हुए सपा को खासी मशक्क्त करनी पड़ी। पर चाचा शिवपाल यादव को लेकर सवाल उनसे अक्सर पूछा जाता था। वह उनको अपने साथ लाकर तमाम सवालों का जवाब दे दिया साथ ही एक सीट देकर मना लिया। पर मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव जो पिछली बार सपा से लड़ी थीं, इस बार भाजपा में शामिल हो गईं।

छोटे दलों से गठबंधन क्या कामयाब रहेगा?
पिछली बार कांग्रेस के साथ सपा का मिशन 2017 कामयाब नहीं हुआ। दो साल बाद बसपा के साथ गठबंधन भी नाकाम रहा। इससे सबक लेकर उन्होंने भाजपा के सहयोगी रहे सुभासपा को साथ लिया तो रालोद का साथी बनाया। अन्य छोटे दल के वोट बैंक की अहमियम जानकर उनको भी गठजोड़ में शामिल किया।

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