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राजनीतिक दल यूपी चुनाव में ब्राह्मणों का साथ पाने को बेताब

लखनऊ

यूपी विधानसभा के लिए चुनावी बिसात बिछने लगी है। दलित, पिछड़ों के साथ ही भाजपा हो सपा या फिर बसपा..ब्राह्मणों का साथ पाने के लिए अपने हिसाब से फार्मूले गढ़े जा रहे हैं। यह तो 10 मार्च को परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि ब्राह्मणों का साथ किसे मिला, लेकिन यह साफ है कि जिसको इनका साथ मिलता है, उसके लिए सत्ता की राह आसान हो जाती है।

सियासी दल दावा करते हैं कि यूपी में करीब 11 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। दलित-ओबीसी की अपेक्षा ब्राह्मण मतदाता संख्या के आधार पर भले ही कम हैं, लेकिन माना जाता है कि राजनीतिक रूप से सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। यही वजह है कि ब्राह्मण समुदाय के नेता अपनी शर्तों पर पार्टियों में रहते हैं। उपेक्षा होने की स्थिति में वे शिफ्ट होते रहते हैं।

संतुष्ट नहीं तो शिफ्ट
लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्रत्त् के प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं-‘ब्राह्मण समुदाय अपनी शर्तों पर चलता है। अगर उसे लगता है कि उपेक्षा हो रही है तो वह दूसरी पार्टियों में शिफ्ट हो जाता है। उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ब्राह्मण व दलित हमेशा अलग रहा है, लेकिन 2007 के चुनाव में बसपा द्वारा मिले आश्वासन के बाद उनके साथ आ गया और फिर 2012 में सपा के साथ हो गया। 2017 में भाजपा के साथ चला गया।
 

ब्राह्मणों का वोट पाने के लिए उनका हितैषी बनने के लिए सबके अपने-अपने तर्क हैं। सपा-बसपा जहां विकास दुबे के मामले में खुशी दुबे और पूर्वांचल में ब्राह्मणों के उत्पीड़न का मामला उठा रहे हैं। इसके साथ ही हर मामलों में ब्राह्मणों की अनदेखी का आरोप सरकार पर विपक्षी लगा रहे हैं। वहीं भाजपा अपना तर्क दे रही है। उसका कहना है कि भाजपा ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया।

भाजपा: ब्राह्मणों को साधने की रणनीति

भाजपा ब्राह्मणों को साधने के लिए रणनीति पर काम कर रही है। इसके लिए राज्यसभा सदस्य शिवप्रताप शुक्ला के नेतृत्व में कमेटी बनाई गई है। यह कमेटी पिछले दिनों दिल्ली में पार्टी के रष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर उन्हें कुछ जरूरी सुझाव भी दिए।

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