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सिद्धार्थनगर: बुद्ध की क्रीड़ास्‍थली पर मुद्दों से ज्‍यादा समीकरणों का पडला भारी, जानें इन 5 सीटों का गणित

 सिद्धार्थनगर

भगवान बुद्ध की क्रीड़ास्थली सिद्धार्थनगर में चुनाव, मुद्दों से ज्यादा समीकरणों के इर्द-गिर्द घूम रहा है। बाढ़ का दंश लोगों को चुभता तो है लेकिन यह कभी सियासत को प्रभावित नहीं कर पाता है। इस बार भी ध्रुवीकरण की सियासत के बीच दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह आठवीं बार जीत कर अपना दबदबा बनाए रखने में कामयाब होंगे या पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय सातवीं बार विधानसभा पहुंचेंगे या बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश द्विवेदी उनकी राह रोकने में फिर कामयाब रहेंगे। यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा लेकिन इस बार हर सीट पर चुनौती तगड़ी है।

सिद्धार्थनगर का सियासी मिजाज कुछ अलग ही है। यहां लोग सिर्फ जरूरत पूरी करने की इच्छा रखते हैं, महत्वाकांक्षी नहीं दिखते। शायद यही कारण है कि यह देश के अति पिछड़े जिलों में शामिल है। यहां न तो कोई उद्योग है और न ही रोजगारपरक शिक्षा के लिए कोई संस्थान। विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज हैं भी तो आधे-अधूरे।

जिला मुख्यालय, कपिलवस्तु विधानसभा क्षेत्र में है, लेकिन यहां विज्ञान वर्ग से स्नातक की पढ़ाई के लिए भी इंतजाम नहीं हैं। इसके बावजूद न तो यह चुनावी मुद्दा बना और न ही कोई बड़ा आंदोलन हुआ। जिले के वोटरों ने 2017 में पांच में से चार सीटें भाजपा और एक सीट अपना दल (एस) की झोली में डाल दी थी। इस बार भाजपा ने पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया है। शोहरत गढ़ से अपना दल (एस) विधायक अमर सिंह चौधरी सपा में गए पर टिकट नहीं मिला तो आजाद समाज पार्टी से मैदान में हैं। सपा दो पुराने व दो नए चेहरों के साथ मैदान में है जबकि शोहरतगढ़ सीट सुभासपा के हिस्से में आई है। वहीं बसपा और कांग्रेस ने सभी सीटों पर नए चेहरों पर भरोसा जताया है।

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