ओबीसी की बड़ी जाति कुर्मी पर भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस की नजर, कहां किसका और कैसे होगा कल्याण
लखनऊ
यूपी में सभी सियासी दल ओबीसी की बड़ी जाति कुर्मियों के वोट बैंक पर नज़र गड़ाए हैं। कुर्मियों की सियासत पर अब भाजपा पुरजोर तरीके से पकड़ बनाए हुए है तो सपा ने भी गहरी गोटें बिछाई हैं। कांग्रेस भी बार-बार छत्तीसगढ़ के मख्यमंत्री भूपेश बघेल को यूपी लाकर संकेत दे रही है। सपा ने नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है तो भाजपा के स्वतंत्र देव सिंह कुर्मियों की रहनुमाई कर रहे हैं। परवान चढ़ते इस सत्ता संग्राम में यक्ष प्रश्न है कि आखिर कुर्मी किसका, कहां और कैसे ‘कल्याण’ करेंगे?
कांग्रेस ने सींची कुर्मी नेताओं की नर्सरी
कुर्मी पूरे प्रदेश में अलग-अलग इलाकों में फैले हैं। आजादी के बाद से कांग्रेस में कुर्मियों का बड़ा नेतृत्व रहा। प्रयागराज में रामपूजन पटेल कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे। वह 1967 व 1970 में दो बार विधायक बने। बाद में सितम्बर 1981 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। वह फूलपुर संसदीय क्षेत्र का चार बार नेतृत्व करते रहे। बाद में 1989 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने को लेकर कांग्रेस छोड़ दी और सपा में आ गए। मंडल दौर ने कांग्रेस से इस बड़े वोट बैंक को धीरे-धीरे दूर कर दिया। अब पूर्वांचल में सैंथवार कुर्मियों की विरासत संभाल रहे कद्दावर नेता आरपीएन सिंह भी कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में आ गए हैं।
बरेली गढ़ रहा है कुर्मी राजनीति का
चाहे चेतराम गंगवार हों या भगवतशरण गंगवार या सतोष कुमार गंगवार बरेली, बहेड़ी और नवाबगंज से लेकर पीलीभीत तक कुर्मियों का वर्चस्व है। चेतराम वर्ष 1967 में बरेली की नवाबगंज सीट से जीते और नारायण दत्त तिवारी व वीरबहादुर सिंह की सरकार में मंत्री रहे। नवाबगंज सीट ऐसी है जहां से 52 वर्षों में किसी कुर्मी के अलावा कोई विधायक ही नहीं हुआ। यही वजह है कि नवाबजंग से भाजपा के डा.एमपी आर्य, सपा के भगवतशरण गंगवार, कांग्रेस की ऊषा गंगवार मैदान में हैं तो बहेड़ी से राजस्व राज्यमंत्री छत्रपाल सिंह गंगवार और बसपा के आसेराम गंगवार मैदान में हैं।
बरेली जिले में बारबार जीतते रहे कुर्मी नेता
बरेली में कुर्मियों की पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र के कुर्मी नेता लगातार और बारबार जीतते रहे हैं। मसलन, संतोष गंगवार 8 बार सांसद बने हैं तो नवाबगंज से कभी भाजपा के नेता रहे भगवतशरण गंगवार पांच बार विधायक रहे हैं। खीरी निघासन से राम कुमार वर्मा विधायक रहे और मंत्री बने। बालगोविंद वर्मा दो बार सांसद रहे। उनकी पत्नी ऊषा वर्मा भी सांसद रहीं। उनके बेटे रविप्रकाश वर्मा भी सांसद रहे। राम कुमार वर्मा का बेटा शशांक अब निघासन से भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
पोते और भांजे में जंग
पूर्व विधायक स्व. कौशल किशोर वर्मा के पोते उत्कर्ष वर्मा लखीमपुर शहर से सपा के टिकट पर लड़ रहे हैं। डा. कौशल किशोर वर्मा के भांजे योगेश वर्मा लखीमपुर शहर से भाजपा विधायक हैं। पिछली बार उन्होंने डा. कौशल के पोते को हराया था। दोनों इस बार फिर आमने-सामने हैं। धौराहरा विधानसभा में सपा के नेता रहे स्व. यशपाल चौधरी के बेटे वरुण चौधरी सपा से लड़ रहे हैं।
सपा के कद्दावर नेता रहे बेनी प्रसाद वर्मा
पिछड़ों की राजनीति के उदय के साथ सपा में भी कुर्मी नेताओं का वर्चस्व बढ़ता गया। बाराबंकी में बेनी प्रसाद वर्मा, अंबेडकरनगर में राममूर्ति वर्मा, बस्ती के राम प्रसाद चौधरी बड़े कुर्मियों के कद्दावर नेता हैं। बेनी प्रसाद वर्मा का बाराबंकी और आसपास बड़ा असर रहा। जब तक वह सपा में रहे सपा, बारांबकी, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच व श्रावस्ती में मजबूत रही। बेनी के असर का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वर्ष 2009 में जब वह कांग्रेस में आए तो बाराबंकी से पीएल पुनिया, फैजाबाद से निर्मल खत्री, बहराइच से कमल किशोर कमांडों, महाराजगंज से हर्षवर्धन सिंह समेत कई सांसदों की जीत में कुर्मी वोटरों का असर देखने को मिला। अब बेनी वर्मा के बेटे राकेश वर्मा रामनगर से चुनाव मैदान में हैं।