काफी बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम ने मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म का भ्रमण कर मुक्त कंठ से की प्रशंसा
जगदलपुर
काफी बोर्ड भारत सरकार, वाणिज्य मंत्रालय, के निदेशक, वरिष्ठ वैज्ञानिकों तथा उद्यानिकी विश्वविद्यालय एवं अनुसंधान स्टेशन के वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम बृहस्पतिवार को मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर चिकलपुटी कोंडागांव का भ्रमण कर यहां किये जा शोध कार्यों व आॅर्गेनिक फार्मिंग की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
इस टीम में डॉ सूर्य प्रकाश डायरेक्टर रिसर्च, सलाहकार कॉफी बोर्ड, डॉ. सेंथिल, डीआरएस कॉफी बोर्ड , श्री बसवा वरिष्ठ संपर्क अधिकारी ,श्री उपेंद्र कुमार वरिष्ठ संपर्क अधिकारी? उड़ीसा, डॉ. के.पी. सिंह, वैज्ञानिक, उद्यानिकी विश्वविद्यालय जगदलपुर तथा हेमंत नेताम व नारियल बोर्ड कोंडागांव के अधिकारी गण शामिल थे। टीम का स्वागत मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के संस्थापक डॉ राजाराम त्रिपाठी के द्वारा किया गया। अनुराग त्रिपाठी निदेशक मां दंतेश्वरी हर्बल तथा संपदा समाजसेवी संस्थान की अध्यक्ष जसमती नेताम के द्वारा वैज्ञानिकों की टीम को फार्म भ्रमण कराया गया।
टीम ने आॅस्ट्रेलिया टीम के पौधों पर देश के सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली काली मिर्च की नई वैरायटी मां दंतेश्वरी काली मिर्च- 16 का निरीक्षण किया। तथा बस्तर में पैदा की जा रही काली मिर्च की गुणवत्ता की तारीफ की। देश के शीर्ष शोध संस्थान सीएसआईआर आईएचबीटी पालमपुर के मार्गदर्शन में स्टीविया की बिना कड़वाहट वाली प्रजाति विकसित करने की परियोजना का भी वैज्ञानिक दल ने जायजा लिया। यहां विकसित की गई शक्कर से 25 गुना ज्यादा मीठी पत्तियों वाली स्टीविया पौधे की नई प्रजाति मां दंतेश्वरी स्टीविया-16 के पौधों की पत्तियों को चखकर देखा और इसकी मिठास की भी तारीफ की। यह जानकर कि शक्कर से 25 गुना मीठी होने के बावजूद यह लगभग जीरो कैलोरी वाली निरापद मिठास देती है। अर्थात मधुमेह डायबिटीज के रोगियों के लिए पूरी तरह से निरापद है, सभी ने प्रसन्नता जाहिर की। डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि बस्तर संभाग में लगभग 25 गांवों में औषधीय पौधों तथा काली मिर्च की खेती स्थानीय आदिवासी परिवारों के साथ मिलकर की जा रही । काली मिर्च की यह नई प्रजाति बस्तर के साल के पेड़ों पर भी भली-भांति चढ़कर फलफूल रही है। एक बार लगाने पर यह पौधा 50 साल तक फल दे सकता है।
उल्लेखनीय है कि मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म को देश का सबसे पहला सर्टिफाइड आॅर्गेनिक हर्बल फार्म का दर्जा प्राप्त है। इन्होंने अंतरराष्ट्रीय जैविक प्रमाण पत्र हेतु सन 1996-97 में जैविक हर्बल खेती शुरू की, और इन्हें सन 2000 में आज से 22 वर्ष पहले प्रमाणित आॅर्गेनिक फार्म का अंतरराष्ट्रीय दर्जा मिला। इन खेतों में पिछले 25 वर्षों से 1- एक ग्राम भी जहरीली रसायनिक खाद नहीं डाली गई है।