उत्तर प्रदेश चुनाव: क्या फिर लौट रही मंडल बनाम कमंडल की राजनीति?
लखनऊ
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले नए राजनीतिक समीकरण भी सामने आ रहे हैं। एक दूसरे के समर्थन में सेंध लगाने के लिए राजनीतिक दल तमाम उपाय कर रहे हैं। आखिर जनता के फैसले का आधार क्या होगा? बुधवार को भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा बिष्ट यादव को पार्टी में शामिल करके अपने चौदह विधायकों और मंत्रियों के पार्टी छोड़ने के गम को भुलाने और अखिलेश यादव के परिवार में सेंध लगाने की खुशी भले ही मनाई हो लेकिन इतनी बड़ी संख्या में विधायकों और नेताओं के जाने की अभी और कीमत चुकानी पड़ रही है। यूपी बीजेपी में मची इस भगदड़ का फायदा बीजेपी के सहयोगी दल भी उठाने में लगे हैं। यही वजह है कि टिकट बंटवारे पर दिल्ली से लेकर लखनऊ तक लगातार चल रही बैठकों के बावजूद ना तो अभी सहयोगी दलों के साथ सीटों की साझेदारी तय हो सकी है और ना ही उम्मीदवारों के नाम।
बीजेपी बैकफुट पर
यूपी बीजेपी के एक बड़े नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि अन्य पिछड़ा वर्ग के एक दर्जन से ज्यादा विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद बीजेपी बैकफुट पर है और नहीं चाहती कि अब कोई और मौजूदा विधायक पार्टी छोड़े या फिर कोई सहयोगी दल उनसे अलग हो। उनके मुताबिक, "पिछले सात-आठ साल में बीजेपी ने जिस तरह से अन्य पिछड़ी जातियों को पार्टी से जोड़ा है, उस अभियान को पहली बार गहरा धक्का लगा है। इन विधायकों के पार्टी छोड़कर जाने से ना सिर्फ विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान होगा बल्कि पार्टी के सामाजिक आधार को भी नुकसान पहुंचेगा जिसे बड़ी मुश्किल से तैयार किया गया था।''
सहयोगी दलों को देने लगी भाव
यूपी में बीजेपी की मुख्य रूप से अब दो सहयोगी पार्टियां रह गई हैं- अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी। अपना दल तो बीजेपी के साथ 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त से ही गठबंधन में है लेकिन निषाद पार्टी के साथ गठबंधन नया है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद कहते हैं कि बीजेपी ने उन्हें 15 सीटें देने का आश्वासन दिया है लेकिन बीजेपी की ओर से इस बात की अभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।