असीम अरुण के जरिए सपा के गढ़ में सेंध लगा पाएगी BJP? कन्नौज में कौन है भारी, जानें समीकरण
कन्नौज
कन्नौज (सु.) सदर सीट पर सपा हैट्रिक लगा चुकी है। पिछले तीन चुनाव लगातार जीत चुके सपा के अनिल दोहरे इस बार भी मैदान में हैं। भाजपा ने इस बार नया प्रयोग किया है। कानपुर में पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरुण को उनके मुकाबले उतार कर भाजपा सपा का गढ़ छीनने को लड़ रही है। इत्र और इतिहास के लिए मशहूर कन्नौज में कुल 17 चुनावों में पांच बार कांग्रेस ने कन्नौज पर कब्ज़ा किया। 1980 और 85 के चुनाव कांग्रेस के बिहारी लाल दोहरे ने जीते। बिहारी लाल दोहरे के पुत्र अनिल दोहरे इस समय सपा के विधायक हैं। राम लहर के दौरान 1991, 1993 और 1996 में यह सीट लगातार भाजपा जीती। 1999 में जब मुलायम सिंह यादव कन्नौज से संसदीय चुनाव लड़े तो यह सीट सपा का गढ़ बन गई। 2002 में सपा के कल्याण सिंह दोहरे यहां से जीते। 2007 में वह बसपा से चुनाव लड़े तो सपा के अनिल दोहरे ने उन्हें हरा दिया। अनिल 2012 और 2017 में फिर जीते। यह गढ़ छीनने को भाजपा ने वीआरएस लेकर आए असीम अरुण को उतारा है। भाजपा ने उन्हें गृह जनपद से राजनीति में प्रवेश कराकर सपा का किला जीतने की कोशिश की है।
कौन-कौन दावेदार
समाजवादी पार्टी ने वर्तमान विधायक अनिल दोहरे पर इस बार फिर दांव लगाया है। भारतीय जनता पार्टी ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर आए आईपीएस असीम अरुण को अपना प्रत्याशी बनाया है। असीम अरुण मूलतः कन्नौज के निवासी हैं। बहुजन समाज पार्टी से समरजीत दोहरे चुनाव मैदान में उतारे गए हैं, जबकि कांग्रेस ने विनीता को अपना उम्मीदवार बनाया है।
प्रमुख मुद्दे
कन्नौज के करीब 50 हज़ार परिवार इत्र कारोबार से प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से जुड़े हैं। यहां इत्र कारोबार की तरक्की बड़ा मुद्दा है। इत्र कारोबार से जुड़े मोहम्मद अयाज बताते हैं कि कुछ बड़े नाम तो अपने बल-बूते फल-फूल रहे हैं पर आम कारोबारी को मदद की जरूरत है। उन्हें मदद नहीं मिली। इस कारोबार को कभी कोई सरकारी मदद नहीं मिली। परफ्यूम पार्क बनना शुरू हुआ था। वो प्रोजेक्ट अटक गया। टैक्स की भारी मार पड़ी। कारोबारी अपने संसाधन से ही इस ऐतिहासिक कारोबार की गाड़ी खींच रहे हैं। इलाके का दूसरा बड़ा मुद्दा आलू किसानों का है। करीब एक लाख परिवार इससे जुड़े हैं। आलू स्टोरेज या प्रोसेसिंग के क्षेत्र में उन्हें मदद मिले तो हालत सुधर सकती है।