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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ आज लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सियासत के लिहाज से आज 25 मार्च का दिन खासा ऐतिहासिक है। योगी आदित्यनाथ यूपी के इतिहास के पहले ऐसे मुख्यमंत्री होने जा रहे हैं, जो अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा सीएम पद की शपथ लेंगे। लखनऊ अटल बिहारी वाजपेयी क्रिकेट स्टेडियम (इकाना स्टेडियम) में भव्य शपथ ग्रहण का आयोजन किया गया है। इस आयोजन में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है, उससे सबसे बड़ा संदेश ये देने की कोशिश दिख रही है कि देश में भाजपा को नरेंद्र मोदी के बाद दूसरा बड़े जनाधार वाला बड़ा नेता मिल गया है। सवाल ये है कि क्या भाजपा को योगी आदित्यनाथ में नरेंद्र मोदी का ‘उत्तराधिकारी’ मिल गया है।

शपथ ग्रहण की बात कर लें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ पूरा एनडीए आज लखनऊ में आ रहा है। यही नहीं देश भर के मुख्यमंत्रियों, राजनेताओं, विपक्ष के दिग्गजों के साथ राष्ट्रीय स्वयं संघ और साधु-संतों का जमावड़ा हो रहा है। बॉलीवुड स्टार्स के साथ देश के तमाम जाने-माने उद्योगपति भी योगी के शपथ ग्रहण के गवाह बनेंगे। आयोजन के स्तर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इकाना स्टेडियम में 70 हजार की क्षमता फुल हो गई है। यही नहीं पूरे प्रदेश में शपथ ग्रहण के लाइव प्रसारण के लिए एलईडी की व्यवस्था की गई है। शपथ ग्रहण के साथ ही प्रदेश के मंदिरों में घंटे बजने लगेंगे। पूरा लखनऊ होर्डिंग और पोस्टर से पाट दिया गया है।

इस शपथ ग्रहण में पूरा एनडीए लखनऊ में नजर आ रहा है। लखनऊ कभी भी इतने बड़े स्तर के आयोजन का गवाह नहीं रहा। ऐसे में इस आयोजन के पीछे के मायने भी तलाशे जाने लगे हैं। सबसे ज्यादा चर्चा योगी आदित्यनाथ के भाजपा में बढ़ते कद को लेकर है। दरअसल 2017 में योगी आदित्यनाथ जब मुख्यमंत्री बनाए गए तो उनकी छवि हिंदुत्व के फायर ब्रांड लीडर की थी और वह भाजपा के सांसद थे। चूंकि उनका बैकग्राउंड आरएसएस और भाजपा से सीधे जुड़ा नहीं था, लिहाजा मुख्यमंत्री बनने पर भाजपा में ही विरोधाभास महसूस किया गया। पांच साल ये विरोधाभास कई बार सामने भी आया। लेकिन इन पांच सालों में योगी आदित्यनाथ अपनी छवि को जनता के बीच मजबूत करते चले गए।

2017 में भारतीय जनता पार्टी की जीत को मोदी लहर से जोड़ा गया लेकिन 2022 के चुनावों में मोदी और योगी एक टीम की तरह नजर आए। पूरी भाजपा योगी की अगुवाई में चुनाव लड़ती नजर आई। चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया कि यूपी में तो योगी की अगुवाई में ही भाजपा चुनाव लड़ रही है। योगी के लिए 2022 का चुनाव बड़ी चुनौती था क्योंकि पहली बार वह एक ऐसे दल का नेतृत्व कर रहे थे, जिसने 300 से ज्यादा सीट उनके पहले ही हासिल कर दिखाई थी।

बहरहाल, चुनाव परिणाम आए तो भाजपा फिर से प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता तक पहुंच गई। इस जीत ने प्रदेश में पांच साल योगी आदित्यनाथ के काम पर मुहर लगा दी। परिणाम के बाद साबित हो गया कि केंद्र में मोदी और यूपी में योगी की जोड़ी जमीन पर कमाल कर दिखाने के काबिल है। इस जीत के साथ योगी भी अब भारतीय जनता पार्टी में बड़े चेहरों में शुमार हो गए हैं।

वैसे उत्तराधिकार की जब चर्चा चलती है तो भाजपा में 75 साल की अघोषित रिटायरमेंट उम्र का भी जिक्र आता है। इस उम्र सीमा के चलते कई बड़े दिग्गज नेता अब चुनावी राजनीति से दूर हो चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्र भी अब इसके करीब पहुंच रही है। वहीं योगी आदित्यनाथ अब 49 वर्ष के ही हैं। वैसे पीएम मोदी के बाद दूसरे सबसे ताकतवर नेता माने जाने वाले अमित शाह भी 57 वर्ष के ही हैं।

योगी की छवि और जनता में उनके लिए क्रेज का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि पिछले पांच साल में देश में जितने भी चुनाव हुए पीएम नरेंद्र मोदी के बाद से ज्यादा योगी ही मांग में रहे। राजस्थान से लेकर पश्चिम बंगाल, केरल से लेकर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सभी जगह योगी का कार्यक्रम लगाने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं में होड़ रही।

वैसे इस शपथ ग्रहण में कुछ और छिपे संदेश भी हैं, जिन्हें समझने की जरूरत है…
याद कीजिए 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शपथ ग्रहण समारोह भी कुछ इसी अंदाज में आयोजित किया गया था। उस दौरान भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष पहुंचे थे।

योगी आदित्यनाथ का दूसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने को भाजपा इस तरह से पेश कर रही है कि वोटर ने योगी आदित्यनाथ के धर्म, जाति या उनकी छवि के बारे में की जाने वाली बातों के बजाए, सरकार के काम करने के तरीके पर वोट किया।

बीजेपी से साफ कर देना चाहती है कि पहले नरेंद्र मोदी और अब योगी आदित्यनाथ की लगातार जीत ने यह साबित कर दिया है कि पार्टी को सांप्रदायिक कहकर नकारने वाले दलों और नेताओं को ही जनता ने अस्वीकार कर दिया है।

शपथ ग्रहण को सार्वजनिक जगह करने के पीछे भाजपा के कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने की वजह हो सकती है। ताकि उन्हें एहसास हो कि भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी है, जश्न भी उन्हीं के बीच आकर मनाती है।

भाजपा में योगी आदित्यनाथ का बढ़ता कद ये संकेत दे रहा है कि पार्टी बेहतर प्रदर्शन करने वाले नेताओं को आगे बढ़ाती है। भले ही उस नेता का इतिहास संघ और भाजपा से जुड़ा न रहा हो।

एक बड़ा संदेश यह भी कि भाजपा एक टीम की तरह काम करती है। चुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में चेहरा थे और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह सहित राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा व पूरी भाजपा ने आगे बढ़कर पूरी ताकत के साथ उनका प्रचार किया। पूरी पार्टी एकजुट होकर जिले-जिले चुनाव प्रचार करती नजर आई।

मोदी और योगी दोनों ही मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का खुलकर विरोध करते रहे हैं। इस चुनाव परिणाम से साफ हो गया है कि वह सबका साथ, सबका विकास में विश्वास रखते हैं। उनकी सरकार में किसी भी जाति या धर्म के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। योगी ने मुस्लिम यादव और दलित ओबीसी केंद्रित सियासत को पीछे छोड़कर काम के दम पर दोबारा सत्ता हासिल की।

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