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तपती धूप में अंगारों के मध्य युवा महामंडलेश्वर ने लगाई धूनी

सीहोर। धूप में बैठकर और कन्डों के बीच धूनी रमाए हुए एक संत को देखकर यहां पर आए श्रद्धालुओं ने भगवान शंकर के जय घोष किए, तपती धूप में अंगार के बीच कठिन तपस्या करना सहज नहीं होता है आम आदमी तो कुछ मिनिट में ही ऐसी स्थिति में बाहर आ जाये लेकिन सनातन धर्म को जन-जन को जोड़ने का संकल्प लेकर आगे बढ़ने वाले श्री-श्री 108 अखिल भारतीय महामंडलेश्वर श्री सरजूदास महात्यागी जोकि सबसे कम उम्र में महामंडलेश्वर के रूप में ख्याती प्राप्त कर चुके है, उन्होंने जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में पहुंचकर अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा धर्म को लेकर चर्चा की।

इस मौके पर युवा मंडलेश्वर के साथ आए उनके शिष्यों का विठलेश सेवा समिति के तत्वाधान में स्वागत और सम्मान किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा सहित अन्य संत और महंत हमारे धर्म को जागरूक करने का कार्य करते है, उनके प्रति कोई भी अप्रिय बात नहीं करना चाहिए, बल्कि धर्म के मार्ग पर चलने वालों का सहयोग और साथ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि संत का परिचय उसकी सादगी होती है, जिस तरह से उन्होंने हमारा सम्मान किया है, उससे हम उनके संस्कारों और संस्कृति को प्रणाम करते है। संतों का जीवन निर्मल जल के समान होता है। संतों के उपदेश सदैव प्रेरणादायी होते हैं जिन्हें आत्मसात कर व्यक्ति को अपना जीवन लोक कल्याण के कार्य में समर्पित करना चाहिए। महापुरुषों ने सदैव समाज का मार्गदर्शन कर मानव कल्याण के लिए प्रेरित करने का काम किया है। समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि शनिवार को कामदा एकादशी के पावन अवसर पर भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा के सानिध्य में विशेष पूजा अर्चना की गई थी, वहीं दोपहर को युवा महामंडलेश्वर ने अपने चारों तरफ आग का घेरा बनाकर अपने सिर पर खप्पर जलाकर सभी के कल्याण के लिए तपस्या की।

कठिन तप से गुजरते हैं महामंडलेश्वर
श्री-श्री 108 अखिल भारतीय महामंडलेश्वर श्री सरजूदास महात्यागी ने बताया वह करीब 16 सालों से कठिन तपस्या कर रहे है। उनको मात्र 22 साल की अवधि में महामंडलेश्वर की उपधि प्राप्त हो गई थी, वह राजस्थान के बीकानेर के है। उन्होंने बताया कि 18 साल का समय छह चरण में पूरा होता है। पहले चरण को पंच धूनी कहते हैं। यह तीन साल का होता है। बसंत पंचमी के दिन से इसकी शुरुआत होती है। डेढ़ से तीन घंटे तक संत तपस्या में लीन रहते हैं। पंच धुनी में चार जगह पर आग जलाते हैं। पांचवें स्थान को सूर्य देव मानते हैं। यह चरण पूरा करने के बाद सप्त धुनी होती है। इसे पूरा करने में भी तीन साल लगते हैं। इसके संत छह जगहों पर आग जलाते हैं।
सातवां सूर्य देव की गर्मी लेते हैं। तीसरा चरण द्वादश व चौथा चौरासी धुनी होता है। यह भी तीन-तीन साल चलता है। इसमें संत आग का रिंग बनाकर तपस्या करते हैं। जिसे कोठ या खप्पर बोलते हैं। जिसमें संत अपने सिर पर खप्पर जलाकर तपस्या करते हैं।

प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने लिया पंडित प्रदीप मिश्रा का आशीर्वाद
जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा से भेंट की। इस मौके पर उन्होंने बताया कि आगामी श्रावण मास में हमारे यहां पर जनकल्याण और क्षेत्र की सुख-समृद्धि के लिए लंबे समय से पार्थिव शिवलिंग निर्माण का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा आगामी दिनों में होने वाले आयोजन को लेकर चर्चा की गई। भेंट के दौरान भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने गृहमंत्री श्री मिश्रा और विधायक सुदेश राय को प्रसादी भेंट की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि सनातन धर्म को आगे बढ़ाने के लिए आपका सबसे बड़ा योगदान है। आपकी शिवपुराण आदि के कारण जन-जन में धर्म के प्रति जागरूकता आ रही है।

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