धर्म

अपूर्णता से पूर्णता की ओर

मनुष्य का बाह्य जीवन वस्तुत: उसके आंतरिक स्वरूप का प्रतिबिम्ब मात्र होता है। जैसे ड्राइवर मोटर की दिशा में मनचाहा बदलाव कर सकता है। उसी प्रकार, जीवन के बाहरी ढर्रे में भारी और आश्चर्यकारी परिवर्तन हो सकता है। वाल्मीकि और अंगुलिमाल जैसे भयंकर डाकू क्षण भर में परिवर्तित होकर इतिहास प्रसिद्ध संत बन गये। गणिका और आम्रपाली जैसी वीरांगनाओं को सती-साध्वी का प्रात: स्मरणीय स्वरूप ग्रहण करते देर न लगी। वामित्र और भतृहरि जैसे विलासी राजा उच्च कोटि के योगी बन गये। नृशंस अशोक बौद्ध धर्म का महान प्रचारक बना। तुलसीदास की कामुकता का भक्ति भावना में परिणत हो जाना प्रसिद्ध है। ऐसे असंख्य चरित्र इतिहास में पढ़े जा सकते हैं। छोटी श्रेणी में छोटे-मोटे आश्चर्यजनक परिवर्तन नित्य ही देखने को मिल सकते हैं। 
इससे स्पष्ट है कि जीवन का बाहरी ढर्रा जो चिर प्रयत्न से बना हुआ होता है, विचारों में भावनाओं में परिवर्तन आते ही बदल जाता है। मित्र को शत्रु बनते, शत्रु को मित्र रूप में परिणत होते, दुष्ट को संत बनते, संत को दुष्टता पर उतरते, कंजूस को उदार, उदार को कंजूस, विषयी को तपस्वी, तपस्वी को विषयी बनते देर नहीं लगती। आलसी उद्योगी बनते हैं और उद्योगी आलस्यग्रस्त होकर दिन बिताते हैं। दुगरुणियों में सद्गुण बढ़ते और सद्गुणी में दुगरुण उपजते देर नहीं लगती। इसका एकमात्र कारण इतना ही है कि उनकी विचारधारा बदल गई, भावनाओं में परिवर्तन हो गया।  
संसार का जो भी भला-बुरा स्वरूप हमें दृष्टिगोचर हो रहा है, समाज में जो कुछ भी शुभ-अशुभ दिखाई पड़ रहा है, व्यक्ति के जीवन में जो कुछ उत्कृष्ट-निकृष्ट है, उसका मूल कारण उसकी अंत:स्थिति ही होती है। धनी-निर्धन, रोग-नीरोग, अकाल मृत्यु-दीर्घ जीवन, मूर्ख-विद्वान, घृणित-प्रतिष्ठत और सफल-असफल का बाहरी अंतर देखकर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। यह बाहरी भली-बुरी परिस्थितियां मनुष्य के मनोबल, आस्था और अंत:प्रेरणाओं की प्रतीक हैं।  
भाग्य यदि कभी कुछ करता होगा तो निश्चय ही उसे पहले मनुष्य की मनोरुचि में ही प्रवेश करना पड़ता होगा, जिसकी अंत:गतिविधियां सही दिशा में चलने लगीं हैं। किंतु जिसका मानसिक स्तर चंचलता, अवसाद, अवास, आलस्य, आवेश, दैन्य आदि से दूषित हो रहा है, उसके लिए अच्छी परिस्थितियां और अच्छे साधन उपलब्ध होने पर भी दुर्गति का ही सामना करना पड़ेगा।  

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button