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सऊदी अरब को बैलिस्टिक मिसाइल बनाने में मदद कर रहा चीन, अब ईरान को कैसे मनाएगा अमेरिका?

रियाद
अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने खुलासा किया है कि, सऊदी अरब अब चीन की मदद से अपनी खुद की बैलिस्टिक मिसाइलों का सक्रिय रूप से निर्माण कर रहा है। अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के हवाले से ये बड़ा दावा किया है। सऊदी अरब द्वारा चीन की मदद से बैलिस्टिक मिसाइल का निर्माण एक ऐसी घटना मानी जा रही है, जो पूरे मध्य पूर्व की राजनीति में उथल-पुथल मचा सकता है। क्योंकि, विश्लेषकों का कहना है कि, अब ईरान को मनाना अमेरिका के लिए कतई आसान नहीं होगा, क्योंकि उसका 'दुश्मन' सऊदी अरब बैलिस्टिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है। बैलिस्टिक मिसाइल बना रहा सऊदी अरब बैलिस्टिक मिसाइल बना रहा सऊदी अरब सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी खुफिया एजेंसी के तीन स्रोतों ने पुष्टि करते हुए कहा है कि, सऊदी अरब को अतीत में चीन से बैलिस्टिक मिसाइल खरीदने के लिए जाना जाता है, लेकिन वह अब तक अपनी खुद की मिसाइल बनाने में सक्षम नहीं है।

 लेकिन, सीएनएन ने सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर दावा किया है कि, सऊदी किंगडम वर्तमान में कम से कम एक स्थान पर बैलिस्टिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सहित कई एजेंसियों के अमेरिकी अधिकारियों को हाल के महीनों में क्लासीफाइड खुफिया जानकारी दी गई है, जिसमें चीन और सऊदी अरब के बीच संवेदनशील बैलिस्टिक मिसाइल टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर किया गया है।

सऊदी के बैलिस्टिक मिसाइल बनाने से असर सऊदी के बैलिस्टिक मिसाइल बनाने से असर सऊदी अरब का बैलिस्टिक मिसाइल बनाना अमेरिका के लिए खाड़ी और मिडिल इस्ट में काफी समस्याएं खड़ी करने वाला है। भले ही अमेरिका और सऊदी अरब के बीच अच्छे संबंध हैं, लेकिन अब ईरान को परमाणु समझौते के लिए तैयार करना अमेरिका के लिए काफी मुश्किल होने वाला है। शिया बहुल ईरान और सुन्नी बहुल सऊदी अरब की क्षेत्रीय दुश्मनी जगजाहिर है, ऐसे में सवाल ये उठता है कि, क्या सऊदी द्वारा बैलिस्टिक मिसाइल का निर्माण नाटकीय रूप से क्षेत्रीय शक्ति की गतिशीलता को बदल सकती है और ईरान के साथ परमाणु समझौते की शर्तों का विस्तार करने के प्रयासों को काफी मुश्किल कर सकता है, जिसमें एक शक्त ईरान पर मिसाइल टेक्नोलॉजी के परीक्षण पर प्रतिबंध शामिल है। सऊदी अरब-ईरान संबंध सऊदी अरब-ईरान संबंध ईरान और सऊदी अरब लंबे वक्त से कड़वे दुश्मन हैं और अब जबकि सऊदी अरब बैलिस्टिक मिसाइलों का निर्माण कर रहा है, इस बात की संभावना न्यूनतम हो गई है, कि तेहरान बैलिस्टिक मिसाइल निर्माण रोकने पर सहमत होगा। मिडिलबरी इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के हथियार विशेषज्ञ और प्रोफेसर जेफरी लुईस ने कहा कि, "ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल निर्माण पर पूरी दुनिया का ध्यान है और कड़े प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं, लेकिन सऊदी अरब के मिसाइल निर्माण को लेकर कोई जांच नहीं की गई है।"
 सऊदी अरब-इजरायल को छूट क्यों?
सऊदी अरब-इजरायल को छूट क्यों? प्रोफेसर लुईस ने कहा कि, "सऊदी अरब द्वारा बैलिस्टिक मिसाइलों के घरेलू उत्पादन से पता चलता है कि मिसाइल प्रसार को नियंत्रित करने के लिए किसी भी राजनयिक प्रयास में सऊदी अरब और इजराइल जैसे अन्य क्षेत्रीय शक्तियों को शामिल करना होगा, जो अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों का उत्पादन करने में जुटे हुए हैं।" इसके साथ ही, इस मसले पर कोई भी अमेरिकी प्रतिक्रिया चीन के साथ राजनयिक तनाव को और जटिल कर सकती है, क्योंकि बाइडेन प्रशासन जलवायु, व्यापार और महामारी सहित कई अन्य उच्च-प्राथमिकता वाले नीतिगत मुद्दों पर बीजिंग को फिर से साथ जोड़ना चाहता है।

बाइडेन प्रशासन के सामने नई चुनौतियां बाइडेन प्रशासन के सामने नई चुनौतियां सीएनएन ने पहली बार 2019 में रिपोर्ट दी थी, कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को पता था कि सऊदी अरब अपने बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए चीन की मदद ले रहा है। लेकिन, तत्कालीन डोनाल्ड प्रशासन ने आंखें मुंदी रखी। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये थी, कि ट्रंप प्रशासन सऊदी अरब पर काफी मेहरबान था और डोनाल्ड ट्रंप के खुद सऊदी किंगडम से काफी अच्छे संबंध रहे हैं। परमाणु प्रसार विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि, डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के आंख मुंदने की वजह से सउदी को अपने बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम का विस्तार जारी रखने के लिए प्रोत्साहन मिला।

 लेकिन, अब बाइडेन प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती ये है कि, वो सऊदी अरब को किस तरह से रोके? क्योंकि, बाइडेन प्रशासन भी सऊदी अरब को लेकर कोई सख्त कदम उठाना नहीं चाहेगा, दूसरी तरफ अब ईरान को मिसाइल प्रोग्राम बंद करने के लिए कहना बाइडेन प्रशासन के लिए पसीना छुड़ाने वाला होगा।

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