जलाने मोमबत्ती नहीं, पैरासीटामॉल का एक पत्ता 420 रुपये का; मुश्किल हालात में ऐसे जी रहे हैं श्रीलंकावासी
कोलंबो
श्रीलंका में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर कर रहे लोग सड़कों पर उतर आए हैं। वहीं, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने भी स्थिति की गंभीरता के मद्देनजर आपातकाल का ऐलान कर दिया है। दरअसल, मुल्क के आर्थिक हालात के चलते यह पूरा संकट खड़ा हुआ है। देशवासियों में इस कदर निराशा है कि एक ओर कुछ लोग भागकर तमिलनाडु का रुख कर रहे हैं। वहीं, कुछ मुश्किल से गुजारा कर रहे हैं। नौबत यहां तक आ गई है कि लोगों को बुनियादी दवाएं भी नसीब नहीं हो रही हैं। 31 वर्षीय स्कूल टीचर वाणी सुसई बताती हैं कि आर्थिक संकट के संकेत जनवरी के अंतिम सप्ताह में मिलने लगे थे। उन्होंने कहा, 'उस रविवार की सुबह मेरे घर पर गैस खत्म हो गई। मैंने सिलेंडर की जानकारी लेने के लिए एजेंसी में कॉल किया और मुझे बताया गया कि वे इसे कई दिनों तक डिलीवर नहीं कर पाएंगे। मैं सिलेंडर की तलाश में दुकानों पर जाने लगी। अंत में तीन घंटों के बाद एक सिलेंडर मिला।'
वे बताती हैं कि दो महीनों के बाद सप्ताह में एक बार कुकिंग गैस की आपूर्ति रुक जाती है और सभी लोग रविवार को कतार में लगकर यह हासिल करते हैं। यह कतार सुबह 4 बजे लगना शुरू हो जाती है। उन्होंने कहा कि वे 1000 हजार से ज्यादा लोगों की लाइन में एक बार में 300 टोकन देते हैं। सुसई के पति खाड़ी देश में नौकरी करते हैं। उनका कहना है, 'अगर मौका मिला, तो वह यहां से चली जाएंगी।' सुसई का कहना है कि तीन लोगों के परिवार में उनकी मां, बच्ची और वे खुद शामिल हैं और जरूरी खर्च 30 हजार श्रीलंकाई रुपये महीना है। उन्होंने कहा, 'लेकिन इस महीने मैं पहले ही 83 हजार रुपये खर्च कर चुकी हूं। यहां मिल्क पाउडर की कमी है। चावल और दाल के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। 7 घंटे बिजली कटौती होती है, लेकिन कोई मोमबत्ती नहीं है। 12 टैबलेट वाले पैरासीटामॉल स्ट्रिप की कीमत 420 रुपये है और कई दवाएं गायब हो गई हैं। मेरी सैलरी 55000 रुपये है और हम मेरे पति की तरफ से भेजे हुए रुपयों से काम चला लेते हैं, लेकि क्या हम पैसा खा सकते हैं?'
एक नहीं है दुखभरी कहानी
कुरुणेगाला में डेंटल सर्जन डॉक्टर समंत कुमारा बताते हैं कि उनका बेटा ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहा है, लेकिन वे उसे पैसा नहीं भेज पा रहे हैं। टैक्सी ड्राइवर का काम करने वाले रहमान तस्लीम ने अब बढ़ई का काम शुरू कर दिया है। वे सोच रहे हैं कि भारत उन्हें शरण देगा या नहीं या फिर वे दुबई जाने की कोशिश करें। बीते तीन सालों में 5 बार काम बदलने वाले तस्लीम काम चलाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। यूनाइटेड नेशनल पार्टी के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे ने चेताया है कि यह संकट 5 सालों तक चल सकता है। वे राजपक्षे सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं और कहते हैं कि इसने निवेशकों के भरोसे को हिला दिया है। सूचना मंत्रालय के अतिरिक्त महानिदेशक मिलिंद राजपक्षे का कहना है कि वे भारत और चीन की क्रेडिट लाइन पर निर्भर हैं।