विदेश

श्रीलंका में 100 रुपए में मिल रही है चाय, ‘कर्ज जाल’ में फंसकर ध्वस्त होने की कगार पर अर्थव्यवस्था

नई दिल्ली।
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था कर्ज के जाल में फंसकर ध्वस्त होती दिख रही है। श्रीलंका ने दुनिया के अलग-अलग देशों से करीब 3500 करोड़ डॉलर का कर्ज लिया है। इसमें से 400 करोड़ डॉलर से अधिक कर्ज उसे इस साल चुकाना है। कर्ज के बोझ तले दबी श्रीलंका की सरकार के पास अब कर्ज चुकाना तो दूर अपने लोगों को दो वक्त की रोटी मुहैया कराना मुश्किल हो रहा है। श्रीलंका चीन के कर्ज में सबसे अधिक दबा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका पर जितना विदेशी कर्ज है उसका 10 फीसदी हिस्सा चीन ने दिया है।

गलतियों और हालात ने यहां तक पहुंचाया
आपको बता दें कि 2021 में 8400 करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था थी। जीडीपी की विकास दर में 2011 से लगातार गिरावट जारी है। 2009 में 4200 तो 2018 में 8800 करोड़ की थी अर्थव्यवस्था। 2018 में 15 फीसदी से घटाकर वैट की दर को 8 फीसदी कर दिया था। 2019 में कोलंबो में बम धमाके में 253 लोगों की मौत के बाद पर्यटन बुरी तरह प्रभावित हुआ। इससे श्रीलंका की आय में भारी गिरावट दर्ज की गई थी।

बढ़ती महंगाई दर बढ़ा रही मुश्किल
श्रीलंका में इस साल मार्च में महंगाई दर बढ़कर 18.8 फीसदी थी। राजधानी कोलंबों में ये दर 15.1 फीसदी थी। वहीं खाद्य महंगाई दर फरवरी में 25.7 फीसदी थी जो एक दशक में अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच चुकी है। आलम ये है कि 25 रुपये में मिलने वाली एक कप चाय अब 100 रुपये से ज्यादा की मिल रही है।

दूसरे देशों ने नहीं की अच्छी पेशकश
श्रीलंका चीन के कर्ज जाल में पिछले 15 वर्षों से फंसा है। बीजिंग ने अमेरिका और भारत की तुलना में कर्ज की अच्छी पेशकश की। इसी कारण श्रीलंका दूसरे देशों की बजाए चीन से कर्ज लेने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाता रहा। चीन ने श्रीलंका को कर्ज रणनीति के तहत दिया होगा।

और टूटती गई अर्थव्यवस्था की कमर
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका में गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2019 में गरीबों की संख्या 9.2 फीसदी थी। 2020 में ये दर बढ़कर 11.7 फीसदी हो गई, इस अनुसार पांच लाख से अधिक लोग रोजाना 230 रुपये से कम कमाते हैं। लॉकडाउन के दौरान सरकार ने 50 लाख लोग ऐसे चिन्हित किए थे जिनके पास खाने को पैसे नहीं थे।

ये देश पहले से आर्थिक संकट से जूझ रहे
1-वेनेजुएला: जीडीपी दर वर्ष 2014 से 2020 के बीच दो तिहाई सिकुड़ गई थी। 2022 में इसमें और पांच फीसदी की गिरावट आई। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार मार्च 2019 में वेनेजुएला की 94 फीसदी आबादी गरीबी में जीवन व्यतीत कर रही थी।

2-म्यांमार: सैन्य तख्तापलट के बाद 2021 में यहां 16 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई। सेना और सरकार के बीच संघर्ष में कपड़ा और पर्यटन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए। 2.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए जो म्यांमार की आधी जनसंख्या है।

3-सूडान: सेना और आम लोगों के बीच चले रहे संघर्ष में सकल घरेलू उत्पाद को लगातार क्षति हो रही है। 2020 में जीडीपी में 8.4 फीसदी की गिरावट आई जबिक 2019 में ये आंकड़ा 2.5 फीसदी थी। वर्ष 2020 में महंगाई दर 124.9 फीसदी हो गई थी।

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