यूक्रेन में चल रही जंग ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बुरी तरह से फंसा दिया है

मास्को/बीजिंग: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आदेश पर पिछले 27 दिनों से यूक्रेन में चल रही जंग ने चीन और उसके राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बुरी तरह से फंसा दिया है। गत 18 मार्च को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जिनपिंग से इस मुद्दे पर बातचीत की। शी जिनपिंग ने कहा कि चीन यूक्रेन संकट का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है। लगे हाथ उन्होंने ताइवान मुद्दे पर अमेरिका को घेरने की कोशिश की। इस पर बाइडन ने पलटवार कर दिया और कहा कि अमेरिका के ताइवान नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। साथ ही चेताया कि अगर चीन ने यूक्रेन मुद्दे पर रूस की मदद की तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे। बाइडन की इस चेतावनी से चीनी राष्ट्रपति दोराहे पर पहुंच गए हैं जहां दोनों ही तरफ खतरा है….
एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि यूक्रेन में हालात इस बिंदू तक पहुंच गए हैं जिसे चीन नहीं देखना चाहेगा। जिनपिंग का यह बयान मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा है। उन्होंने अमेरिकी नेतृत्व को यह बताना चाहा कि मैं यूक्रेन में चल रहे रक्तपात का समर्थन नहीं करता हूं और मैं इससे किनारा करता हूं। उन्होंने रूसी नेताओं को संदेश दिया कि अगर आपने यूक्रेन पर एक झटके में जीत हासिल कर लिया होता तो मैं स्वीकार कर सकता था लेकिन चूंकि आपने पूरी दुनिया में झमेला पैदा कर दिया है, मैं इसमें केवल हाथ धो सकता हूं।
शी जिनपिंग ने चीनी जनता से कहा कि रूसी सेना बहुत आगे बढ़ चुकी है, हम अब उनके साथ बहुत लंबे समय तक नहीं रह सकते हैं। शी जिनपिंग का यह बयान और अमेरिकी चेतावनी पुतिन के लिए इस बात का संकेत है कि वह युद्ध में भारी नुकसान उठा रहे हैं और बड़े शहरों पर भी कब्जा नहीं कर पाए हैं। रूस अब चीन का राजनीतिक और आर्थिक समर्थन खो रहा है। साथ ही वह अब और ज्यादा अलग-थलग हो गया है। इससे अब रूस को बातचीत के जरिए जल्द समझौता करना होगा या धीरे-धीरे करके सैनिकों की वापसी या यूक्रेन के नए हथियारों के साथ ताजा हमले का सामना करना होगा।
चीन इस बात से खुश होगा कि रूस के यूक्रेन पर हमले से दुनिया से उसकी नजर हट गई है। चीन अब बड़ी मुश्किल में फंस गया है। चीन नहीं चाहेगा कि रूस की हार हो, क्योंकि इससे पुतिन का राजनीतिक पतन हो सकता है। यही नहीं रूस का विघटन भी हो सकता है। वहीं चीन रूस के भार को बहुत दिनों तक नहीं सह सकता है क्योंकि उसके पतन के साथ चीन का भी पतन हो सकता है। गत 14 मार्च को चीन के वार्ताकार ने अमेरिकी एनएसए को यूक्रेन में समर्थन देने के बदले अमेरिका से ताइवान, हॉन्ग कॉन्ग, शिंजियांग और तिब्बत में समर्थन मांगने की कोशिश की थी। लेकिन माना जा रहा है कि अमेरिका ने इसे खारिज कर दिया था।
चीन की सेना ने वियतनाम के बाद 40 साल में एक भी युद्ध नहीं लड़ा
उधर, रूसी सेना के खराब प्रदर्शन ने चीन के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। रूस पिछले 20 साल से कहीं न कहीं जंग लड़ रहा है। इसके बाद भी उसकी सेना यूक्रेन की अमेरिका प्रशिक्षित सेना के सामने खराब प्रदर्शन कर रही है। चीन की सेना ने तो वियतनाम के बाद पिछले 40 साल में एक भी युद्ध नहीं लड़ा है। ऐसे में अब चीन के पास एक स्पष्ट रुख लेने के लिए बहुत ही कम समय बचा है। अब पुतिन को अगले कुछ सप्ताह में यह फैसला लेना ही होगा कि उन्हें कीव को तबाह करना है या वहां से अपनी सेना को हटाना है।